दल बदल कानून ही है जो किसी पार्टी के विधायक या सांसद को पार्टी में बांधे रखता है. यही वजह है कि सांसद शत्रुघ्न सिन्हा अपनी पार्टी बीजेपी को खुलकर कोसते हैं लेकिन पार्टी उनको आजाद नहीं कर रही है. कर्नाटक विधानसभा में बीजेपी के सीएम बीएस येदियुरप्पा तभी बहुमत साबित कर पाएंगे जब कांग्रेस या जनता दल सेकुलर यानी जेडीएस के कुछ विधायक उनकी सरकार बचाने के लिए उनके पक्ष में वोट करके या सदन से गायब रहकर खुद की सदस्यता गंवाने का मन बना लें.
नई दिल्ली. कर्नाटक विधानसभा में शनिवार की शाम 4 बजे जब बीजेपी सरकार के तीन दिन पुराने मुखिया और राज्य के तीसरी बार मुख्यमंत्री बने बीएस येदियुरप्पा बहुमत साबित करने के लिए विश्वास मत का प्रस्ताव रखेंगे और उसके बाद सदन में मौजूद उनकी पार्टी भाजपा के अलावा कांग्रेस, जनता दल सेकुलर यानी जेडीएस, बीएसपी, कर्नाटक प्रज्ञावंत जनता पार्टी और और एक निर्दलीय विधायक वोट करेंगे तो सदन के अंदर और बाहर सबकी नजर इस बात पर ही होगी कि येदियुरप्पी की 104 विधायकों वाली पार्टी बीजेपी को बहुमत के जादुई आंकड़े 112 तक पहुंचाने के लिए कांग्रेस और जेडीएस के कितने और कौन-कौन से विधायक दल बदल कानून की बलि बेदी पर अपनी शहादत देते हैं. शहादत इसलिए कि पार्टी लाइन से हटकर वोट करने या सदन में आने से ही मना करने वाले किसी भी विधायक की सदस्यता नहीं बच पाएगी भले येदियुरप्पा की सरकार बच जाए और वो बाद में अपनी ही सीट से बीजेपी के टिकट पर उप-चुनाव जीतकर आ जाएं.
दल बदल कानून 1985 में बना था जिसके लपेटे में 2009 तक लोकसभा के 26 सांसद और अलग-अलग राज्यों की विधानसभा 113 विधायक अपनी सदस्यता गंवा चुके हैं. ये कानून राजनीतिक दल के टिकट पर लोकसभा या विधानसभा का सदस्य बने किसी सदस्य की सदस्यता स्वेच्छा से अपनी पार्टी छोड़ने पर छीन लेता है. इस कानून के तहत पार्टी के फैसले और निर्देश के खिलाफ सदन में वोट करने या सदन से गायब रहने पर भी सदस्यों की सदस्यता चली जाती है.
कर्नाटक में बहुमत से 8 सीट पीछे बीजेपी, सरकार बचाने के लिए येदियुरप्पा के पास तीन विकल्प
2003 तक इस कानून के तहत पार्टी विधायक दल या संसदीय दल में एक तिहाई सदस्यों के पार्टी तोड़ने को मान्यता थी लेकिन संविधान के 91वें संशोधन के जरिए वो प्रावधान खत्म कर दिया गया है. अब रह गया है दो तिहाई सदस्यों का किसी पार्टी में विलय का प्रावधान. यानी पार्टी के जितने सदस्य हैं उसमें दो तिहाई अगर एक साथ हैं तो वो पार्टी मान लिए गए हैं और वो किसी और पार्टी में विलय करना चाहें तो उनकी सदस्यता नहीं जाएगी.
बीएस येदियुरप्पा को बहुमत टेस्ट के दौरान कांग्रेस और जेडीएस के विधायकों की मदद चाहिए ही चाहिए क्योंकि उनके पास खुद के 104 विधायक ही हैं. कांग्रेस या जेडीएस के विधायकों की मदद के बिना येदियुरप्पा की सरकार नहीं बच पाएगी क्योंकि कांग्रेस और जेडीएस के पास 78 और 37 कुल 115 विधायक हैं. 224 सदस्यों वाली कर्नाटक विधानसभा में 222 सीट पर चुनाव हुए थे इसलिए 222 के नतीजे आए हैं. 222 में 115 विधायक कांग्रेस और जेडीएस के हैं जबकि 104 बीजेपी के. टोटल बना 219. बचे 3 जिसमें एक बीएसपी का विधायक है जिसने जेडीएस के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा था. दूसरा निर्दलीय है और तीसरा कर्नाटक प्रज्ञावंत जनता पार्टी का विधायक है. ये तीनों एक-एक हैं. ये जिधर चाहें, जा सकते हैं और इनके आने-जाने से दल बदल कानून का कोई उल्लंघन नहीं होगा.
इन तीन को बीजेपी अपने पाले में कर भी ले तो उसके पास 107 विधायक होंगे. बहुमत से 5 कम. येदियुरप्पा की चिंता ये है कि इन 3 के बाद कोई ऐसा विधायक है ही नहीं जो बिन दल बदल कानून तोड़े बीजेपी या येदियुरप्पा की मदद कर सके क्योंकि बाकी सब या तो कांग्रेस के टिकट पर जीते हैं या जेडीएस के. इनमें से कोई येदियुरप्पा की मदद तभी कर पाएगा जब वो ये मन बना ले कि बीजेपी की सरकार बचाने के बाद उसे अपनी सदस्यता गंवानी है.
सदन में बहुमत का फैसला असल में 222 के बदले 221 विधायकों में बहुमत पर होगा क्योकिं जेडीएस के सीएम कैंडिडेट एचडी कुमारस्वामी 2 सीट से जीते हैं और उन्हें बहुमत परीक्षण में एक सीट छोड़ना पड़ेगा. 221 सीट पर बहुमत के लिए 111 विधायकों का समर्थन काफी होगा. बीजेपी को अपनी पार्टी के 104 विधायकों के अलावा 7 और समर्थन चाहिए. येदियुरप्पा के पास दो विकल्प हैं. एक तो वो कांग्रेस या जेडीएस के विधायकों से सीधे अपने पक्ष में वोट कराएं और उनकी सदस्यता जाने के बाद उप-चुनाव जिताकर लाएं.
दूसरा विकल्प है कि वो कांग्रेस और जेडीएस के कम से कम 14 विधायक को सदन में ना आने के लिए मना लें. ऐसा हुआ तो सदन में सदस्यों की क्षमता 207 पर आ जाएगी और तब 104 विधायक पर ही बीजेपी को बहुमत मिल जाएगा. बीजेपी अगर 104 के ऊपर निर्दलीय, बीएसपी या कर्नाटक प्रज्ञावंत जनता पार्टी के विधायक को साथ में ला पाती है तो उसकी सीधी क्षमता 107 की होगी. इस स्थिति में कांग्रेस और जेडीएस के 8 विधायक भी सदन नहीं पहुंचे तो उसका काम बन जाएगा. सदन नहीं आने वाले सदस्यों की सदस्यता भी दल बदल कानून के तहत जा सकती है लेकिन उसमें थोड़ी कानूनी लड़ाई हो सकती है अगर सदस्य तर्क दे कि वो तो बीमार होकर बेड पर था या किसी और कारण से नहीं आ सका.
सुप्रीम कोर्ट का आदेश- बीएस येदियुरप्पा को शनिवार शाम 4 बजे साबित करना होगा बहुमत
जेडीएस नेता एचडी कुमारस्वामी भले मीडिया में कह रहे हों कि बीजेपी ने अगर उनके तीन विधायक तोड़े तो उनकी पार्टी बीजेपी के 6 विधायक तोड़ेगी, लेकिन सच्चाई सबको पता है कि बीजेपी की तोड़-फोड़ से बचाने के लिए जेडीएस के अलावा कांग्रेस के विधायक अपनी ही पार्टी की पहरेदारी में हैं. शनिवार को प्रोटेम स्पीकर केजी बोपैय्या को सदन में बहुमत परीक्षण कराना है जिनकी नियुक्ति के खिलाफ कांग्रेस फिर से सुप्रीम कोर्ट गई है क्योंकि उन्होंने येदियुरप्पा की सरकार बचाने के लिए पहले भी 16 विधायकों को अयोग्य करार दे दिया था जिसमें 11 तो बीजेपी के थे.
सुप्रीम कोर्ट का आदेश है कि प्रोटेम स्पीकर ही सदस्यों को शपथ दिलाएगा और बहुमत टेस्ट कराएगा. प्रोटेम स्पीकर बहुमत टेस्ट करने के लिए वोट करवाते हैं या विधायकों को अलग-अलग तरफ खड़ा करवाकर उनकी गिनती गरवाते हैं- ये सब शनिवार को ही पता चलेगा. लेकिन इतना तो अभी से साफ है कि अगर येदियुरप्पा की सरकार बचेगी तो तभी बचेगी जब कांग्रेस और जेडीएस के कुछ विधायक शहीद होने के लिए तैयार हों.
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