कर्नाटक में विधानसभा चुनाव के वोटों की गिनती चल रही है और नरेंद्र मोदी का करिश्मा दक्षिण भारत में भी सिर चढ़कर बोल रहा है. बीजेपी ने बहुमत से ज्यादा सीटों पर बढ़त बना ली है. कांग्रेस और जेडीएस के वोट बंट गए और दोनों पार्टियां मुख्य विपक्षी पार्टी बनने की होड़ में दिख रही हैं. कर्नाटक में बीजेपी की बड़ी जीत, अपने दम पर बहुमत का दूरगामी असर ना सिर्फ 2019 के लोकसभा चुनाव पर पड़ेगा बल्कि इस साल के अंत तक होने वाले राजस्थान, मध्य प्रदेश जैसे राज्यों के विधानसभा चुनाव पर भी होगा. बीजेपी की एक के बाद एक जीत ने फिर से विपक्षी दलों के लिए महागठबंधन की राजनीति को जिंदा कर दिया है क्योंकि बीजेपी के विस्तार से कई पार्टियों के असरदार अस्तित्व पर ही खतरा पैदा हो गया है.
नई दिल्ली. कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजे आने से ठीक एक दिन पहले कांग्रेस के बड़े नेता बी के हरिप्रसाद ने कहा था कि ज़रूरत पड़ने पर उनकी पार्टी जेडीएस के साथ मिलकर भी सरकार बना सकती है. उससे पहले कर्नाटक के निवर्तमान मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने भी कहा था कि अगर मुख्यमंत्री के रूप में किसी दलित का नाम आगे आया, तो वो कुर्सी छोड़ने के लिए तैयार हैं. इशारा जेडीएस की ओर ही था, जिसने दलितों की राजनीति करने वाली बसपा के साथ मिलकर कर्नाटक का चुनाव लड़ा था. अब कर्नाटक के नतीजे इशारा कर रहे हैं कि जेडीएस और कांग्रेस के गठबंधन की ज़रूरत नहीं पड़ने वाली. दोनों के बीच वोटों के बंटवारे का फायदा बीजेपी उठा चुकी है. फिर भी नतीजों से पहले जो बयान आए, उसे 2019 के महागठबंधन की मजबूरी के तौर पर देखा जा सकता है.
2017 में यूपी विधानसभा चुनाव के नतीजे आने से ठीक पहले समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा था कि अगर ज़रूरी पड़ा तो वो बीएसपी से समर्थन लेने या देने के लिए भी बात कर सकते हैं. नतीजे आने के बाद इसकी नौबत नहीं आई लेकिन इससे सपा-बसपा के बीच महागठबंधन की नींव ज़रूर पड़ गई. अब कर्नाटक विधानसभा चुनाव के रुझान बता रहे हैं कि वहां भी अब बीजेपी को 2019 में हराने का एक ही रास्ता है- कांग्रेस और जेडीएस का महागठबंधन. इस संकेत को इस बात से भी हवा मिल रही है कि शुरुआती रुझान देखते ही कांग्रेस नेता गुलाम नबी आज़ाद अचानक जेडीएस अध्यक्ष एचडी देवगौड़ा से मिलने जा पहुंचे.
कर्नाटक के नतीजों को 2019 का ट्रेलर माना जा रहा था. ये बिल्कुल सही है. कर्नाटक के चुनाव नतीजे देखने के बाद 2019 में राजनीतिक दलों का ध्रुवीकरण तेज होना तय लग रहा है. पहले यूपी और अब कर्नाटक के नतीजों ने साफ कर दिया है कि जिन राज्यों में बीजेपी और कांग्रेस के अलावा कोई क्षेत्रीय दल भी मजबूत है, वहां बीजेपी को तभी हराया जा सकता है. इसी सच्चाई को स्वीकार करते हुए यूपी में सपा-बसपा ने अपना 23 साल पुराना बैर भुलाया. अब कर्नाटक का जनादेश बता रहा है कि 2019 में महागठबंधन करना कांग्रेस और गैर बीजेपी दलों के लिए मजबूरी बन चुका है. बीजेपी के चुनावी मैनेजमेंट और मोदी के मैजिक की काट के लिए महागठबंधन ही इकलौता रास्ता बचा है.