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World University Rankings 2020: उच्च शिक्षा के क्षेत्र में फिसड्डी हो रहा है भारत, शिक्षा में सियासत सहित ये हैं गिरावट के मुख्य कारण

नई दिल्ली. World University Rankings 2020: टाइम्स हायर एजुकेशन वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग ने वर्ष 2020 की टॉप यूनिवर्सिटियों की लिस्ट जारी कर दी है. हालांकि इस लिस्ट में भारत की कोई यूनिवर्सिटी टॉप 300 में जगह नहीं बना पाई हैं. टाइम्स के टॉप 300 इंस्टीट्यूट में एक भी यूनिवर्सिटी शामिल नहीं होने के कारण भारत के हॉयर एजुकेशन इंस्टीट्यूट और सरकार की पॉलिसी पर सवाल उठ भी रहे हैं, जो जायज भी है. क्योंकि कही न कही इसके पीछे सरकार की गलत नीतियां और उच्च शिक्षा में गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा की कमी है. 2012 के बाद यह पहला मौका है जब भारत की कोई भी यूनिवर्सिटी टाइम्स के टॉप 300 विश्वविद्यालयों में नहीं शामिल हुई है. वहीं अगर दुनिया की टॉप 500 यूनिवर्सिटियों की बात करें तो भारत के 6 संस्थान शामिल हैं. इनमें आईआईएससी बेंगलुरू, आईआईटी रोपड़, आईआईटी इंदौर, आईआईटी दिल्ली और आईआईटी खड़गपुर शामिल हैं.

पिछले वर्ष यानी कि 2018 की बात करें तो टाइम्स की लिस्ट में टॉप 300 में आईआईएससी बेंगलुरू शामिल था. सोचने वाली बात यह है कि आखिर आईआईएससी 1 वर्ष बाद ही क्यों टाइम्स की टॉप लिस्ट से बाहर हो गया है. इसके पीछे का कारण सरकार और यूजीसी को तलाशना होगा. क्योंकि अगर हम शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़ जाते हैं तो हम क्षेत्र में पिछड़ जाएंगे और इसका असर आने वाली पिढ़ियों पर पड़ेगा. आपको बता दें कि टाइम्स हायर एजुकेशन वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग में 92 देशों की कुल 1,300 यूनिवर्सिटियों ने भाग लिया था. इसमें सबसे पहला स्थान यूनिवर्सिटी ऑफ ऑक्सफोर्ड, दूसरा स्थान कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी और तीसरा स्थान कैंब्रिज विश्वविद्यालय को मिला है.

टाइम्स हायर एजुकेशन वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग की टॉप 100 में जगह न बना पाने के कारणों के तह में जाएंगे तो इसके कई कारण मिलेंगे. जिसमें सबसे पहला कारण होगा सरकार बदलने के साथ उच्च पदों पर योग्यता न होने पर भी अपने खास को बैठाना. बीजेपी हो या कांग्रेस सभी सरकारें सत्ता में आने पर इंस्टीट्यूट पर भी राजनीति करती हैं. इसका सबसे बड़ा उदाहरण राष्ट्रीय फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान पुणे में गजेंद्र चौहान को डॉयरेक्टर पद पर तैनाती, हालांकि छात्रों के विरोध के चलते उन्हें यह पद छोड़ना पड़ा. यह हाल कोई एफटीआईआई का ही नहीं भारत में ऐसे कई संस्थान हैं जहां पर राजनीतिक पार्टियां सियासत कर रही हैं. 

वही दूसरा कारण- गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा की कमी, गुणत्ता पूर्ण शिक्षा में कमी के कई कारण (लेबोरेटरी का आभाव, आधुनिक उपकरणों की कमी, शिक्षक और छात्र रेसियों में कमी) हैं. इसके अलावा इसके पीछे का सबसे बड़ा कारण पुराने से सिलेबस से पढ़ाई कराना आदि है. रिपोर्ट्स की मानें तो भारत के टॉप इंस्टीट्यूट्स में आज भी पुराने सिलेबस से पढ़ाई की जा रही है. अगर भारत को विश्व में शिक्षा जगत में लोहा बनवाना है तो उसे एजुकेशन नीतियों पर ध्यान देना होगा, नहीं तो हमारे इंस्टीट्यूट टॉप 500 से बाहर हो जाएंगे.

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Aanchal Pandey

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