नई दिल्ली: आज देशभर में शिक्षक दिवस मनाया जा रहा है. शिक्षक दिवस पूर्व राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिवस पर 5 सितंबर को हर साल मनाया जाता है. लेकिन एक और ऐसी शख्सियत हैं जिन्होंने महिलाओं के लिए शिक्षा के द्वारा खोले थे. अफसोस, कि उनके नाम पर कोई दिवस नहीं मनाया जाता. हम बात कर रहे हैं सावित्रीबाई फुले की. कवयित्री, अध्यापिका और समाजसेविका के रुप में विख्यात सावित्रीबाई फुले ने 1848 में लड़कियों के लिए पहला स्कूल खोला था.
9 साल की अल्पआयु में शादी होने के बावजूद उन्हें पढ़ने में अपने पति ज्योतिबा फुले का पूरा सहयोग मिला. ज्योतिबा फुले ने सावित्रीबाई फुले ने सावित्रीबाई फुले की शिक्षा के लिए परिवार और समाज की बंदिशों और तानों की परवाह नहीं की. इसके बाद उन्होंने अन्य लड़कियों को पढ़ाने का बीड़ा उठाया. उस दौर में लड़कियों का पढ़ना अभिषाप माना जाता था लेकिन सावित्रीबाई फुले और ज्योतिबा फुले शिक्षित समाज देखना चाहते थे. सावित्रीबाई फुले और ज्योतिबा फुले ने 1 जनवरी 1848 से 15 मार्च 1852 तक बगैर किसी की आर्थिक मदद और सहारे के लड़कियों के लिए 18 विद्यालय खोल डाले.
ऐसा नहीं है कि उस वक्त लोग पढ़ते नहीं थे. उस वक्त शिक्षा का हक़ केवल उच्च जाति के पुरुषों को ही था, दलित और महिलाओं को शिक्षा ग्रहण करना पाप माना जाता था. सावित्रीबाई शुरू से ही पढ़ना चाहती थीं. एक बार उनके पिता ने उन्हें कोई किताब के पन्ने पलटते देख लिया तो किताब छीनकर खिड़की से बाहर फेंक दी. सावित्रीबाई की पढ़ने की इच्छा मायके में पूरी नहीं हुई लेकिन ससुराल में पति का सहयोग मिला और दोनों ने मिलकर लड़कियों और दलितों के लिए शिक्षा के द्वार खोल डाले.
3 जनवरी 1831 को महाराष्ट्र के सतारा जिले के नायगांव नामक छोटे से गांव में जन्मी सावित्रीबाई फुले की शादी 9 साल की उम्र में ज्योतिबा फुले से हो गई थी. शादी के बाद उन्हें पढ़ने का मौका मिला. उस वक्त समाज शिक्षा छुआछूत, सतीप्रथा, बाल-विवाह तथा विधवा-विवाह जैसी कुरीतियों से बुरी तरह जकड़ा हुआ था. ज्योतिबा और सावित्रीबाई ने जब स्कूल खोलने का सोचा तो उन्हें कई तरह से तंग किया गया. उनके ऊपर कूड़ा फेंका गया, धमकी दी गई लेकिन दोनों अपने लक्ष्य पर अडिग रहे और लड़कियों के लिए 18 स्कूल खोल डाले.
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