नई दिल्ली। अब तक आपने मुस्लिम धर्म में पुरुषों की खतना के विषय में कई बार सुना होगा। लेकिन क्या आपने इसी धर्म के एक विशेष संप्रदाय में होने वाली महिलाओं की खतना के विषय में सुना है? यदि नहीं तो हम आपको बताते हैं इसकी हक़ीकत और आस्था को लेकर आख़िर सत्य क्या है? […]
नई दिल्ली। अब तक आपने मुस्लिम धर्म में पुरुषों की खतना के विषय में कई बार सुना होगा। लेकिन क्या आपने इसी धर्म के एक विशेष संप्रदाय में होने वाली महिलाओं की खतना के विषय में सुना है? यदि नहीं तो हम आपको बताते हैं इसकी हक़ीकत और आस्था को लेकर आख़िर सत्य क्या है?
महिला खतना को लेकर तमाम लोगों में यह भ्रम है कि, यह इस्लाम की है प्रथा है, लेकिन इस लेख से यह भ्रम शायद दूर सकेगा, हम आपको बता दें कि, इस्लाम धर्म में पुरुषों की खतना करवाना सुन्नत है, यानि की धर्म के अनुयायी चाहें तो नहीं भी करवा सकते हैं, लेकिन वैज्ञानिक दृष्टि एवं सुन्नत के चलते इसे धर्म का एक अनिवार्य हिस्सा मानना भी आवश्यक हो गया है। जो कि पुरुषों के लिए बेहद लाभदायक होता है। जबकि इसके उलट महिला खतना न ही किसी सुन्नत का हिस्सा है और न ही वैज्ञानिक दृष्टि से लाभदायक है, यह केवल स्त्रियों के सैक्सुअल डिजायर्स को कम करने की विधि है जो कि, प्रकृति के विपरीत कार्य है और इसे कुप्रथा कहने में बिल्कुल भी आपत्ति नहीं होनी चाहिए।
इस्लाम के पैंगबर हज़रत इब्राहीम अ.स. की सुन्नत के आधार पर इस्लाम में पुरुषों की खतना का प्रावधान है, जो किं वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर गुणकारी एवं लाभादायक है। इस क्रिया के बाद पुरुषों के गुप्त अंग में इंफेक्शन एवं एड्स जैसी घातक बीमारियों का ख़तरा लगभग न के बराबर ही होता है।
नॉर्थ गोवा में रहने वाली मालूमा रानालवी नाम की दाऊदी बोहरा समुदाय से सम्बन्ध रखने वाली स्त्री ने बताया कि, किस तरह बचपन में उसकी दादी ने चॉकलेट खिलाने के बहाने ले जाकर उसकी खतना करवा दी थी। वह कहती हैं कि, भले ही वक्त के साथ शरीर से उनका यह दर्द खत्म हो गया हो लेकिन उनके मस्तिष्क में वह आज भी ताज़ा है। इसके बाद उन्होने तय कर लिया कि, भले ही उनके साथ ऐसा हुआ है लेकिन वह अन्य किसी बच्ची के साथ इस तरह की घटना नहीं होने देंगी। नई दिल्ली। अब तक आपने मुस्लिम धर्म में पुरुषों की खतना के विषय में कई बार सुना होगा। लेकिन क्या आपने इसी धर्म के एक विशेष संप्रदाय में होने वाली महिलाओं की खतना के विषय में सुना है? यदि नहीं तो हम आपको बताते हैं इसकी हक़ीकत और आस्था को लेकर आख़िर सत्य क्या है? इस कुप्रथा को लेकर इनसिया दरीवाल कहतीं हैं कि, शायद फिल्मों के माध्यम से इस तरह की घटना को लेकर लोगों को जाग्रुक किया जा सकता है। इसलिए इनसिया ने इस कुप्रथा को लेकर फिल्म बनाने का फैसला किया है। सवाल यह उठता है कि,क्या इस कुप्रथा को लेकर बोहरा समुदाय की सभी महिलाएं आहत हैं या फिर एक छोटा तबका ही इसकी आलोचना करता है। यह तो फिल्म आने के बाद ही तय होगा,कि इसका विरोध होता है या फिर इस फिल्म के माध्यम से अधिक से अधिक लोग जाग्रुक होंगे।
महिला खतना को लेकर तमाम लोगों में यह भ्रम है कि, यह इस्लाम की है प्रथा है, लेकिन इस लेख से यह भ्रम शायद दूर सकेगा, हम आपको बता दें कि, इस्लाम धर्म में पुरुषों की खतना करवाना सुन्नत है, यानि की धर्म के अनुयायी चाहें तो नहीं भी करवा सकते हैं, लेकिन वैज्ञानिक दृष्टि एवं सुन्नत के चलते इसे धर्म का एक अनिवार्य हिस्सा मा
इसी के चलते उन्होने वी स्पीक आउट कम्यूनिटी बनाकर इस कुप्रथा के खिलाफ सामाजिक एवं कानूनी तड़ाई लड़ने की योजना बना ली जो आज भी जारी है। इस कुप्रथा को लेकर फिल्ममेकर इनसिया दरीवाला कहती हैं कि, मेरा खतना नहीं हुआ है लेकिन घर की बाकी महिलाओं का हुआ है क्योंकि उन्होने इसके खिलाफ आवाज़ नहीं उठाई।
भारत मे चाइल्ड एब्यूज़ पर काम कर रहीं इनसिया दरीवाला कहतीं हैं कि, हो सकता है कि, आने वाले समय में वह फिल्म के माध्यम से इस कुप्रथा को उजागर एवं इसके खिलाफ लोगों को एक जुट करने का कार्य कर सकती हैं।
भारत में चाइल्ड एब्यूज के प्रति लोगो को जाग्रुक कर रही फिल्मेकर इनसिया दरीवाला कहती हैं,भले ही ‘मेरा खतना नहीं हुआ है, लेकिन मेरे घर पर बाकी सभी महिलाओं का खतान हुआ है, क्योंकि उन्होंने आवाज नहीं उठाई। इसलिए मैंने इस’पर फिल्म बनाने का फैसला किया। रिसर्च के सिलसिले में मेरी मुलाकात मुंबई की एक पत्रकार आरिफा जौहरी से हुई। आरिफा नें तमाम मंचो के माध्यम से अपनी इस बात को लोगों तक पहुंचाने का कार्य किया है।
महिलाओं के खतना की प्रक्रिया को अंग्रेजी फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन यानी एफजीएम कहते हैं। इस प्रक्रिया के दौरान वैजाइना में स्थित क्लिटोरिस हुड को एक तेज़ ब्लेड की मदद से काट कर अलग कर दिया जाता है। जिससे उनकी सैक्सुअल डिजायर कम या खत्म हो जाती है जिससे शादीशुदा जीवन भी प्रभावित होता है।
बोहरा समुदाय शिया संप्रदाय का ही एक हिस्सा है, अहमदिया और बोहरा समुदाय को छोड़कर मुस्लिम धर्म के सभी पंथ एवं समुदाय कुरान एवं हदीस की शिक्षाओं का पालन करते हैं। इन मुस्लिम समुदायों द्वारा आदम अ.स., नुह अ.स. एवं इब्राहीम अ.स. से लेकर अन्तिम पैंगम्बर मुहम्मद स.अ. के उपदेशों को अन्तिम उपदेश माना जाता है। साथ इन सब में अन्तिम फैसला पैंगम्बर मुहम्मद स.अ. के उपदेशों के अनुसार ही होता है। बल्कि इसके उलट अहमदिया मिर्ज़ा गुलाम अहमद कादियानी एवं बोहरा समुदाय के लोग इमाम जाफर सादिक के फैसलों को अन्तिम फैसला मानते हैं। इन्ही कारणों से लेकर मुस्लिम धर्म एवं इन पंथों के बीच सदैव विवाद रहता है।
विश्व में सबसे अधिक बोहरा मुस्लिम भारत में निवास करते हैं जिनकी आबादी क़रीब दस लाख है, जो कि, विश्व में बोहरा समुदाय की 80 प्रतिशत आबादी है।