नई दिल्ली. मानव संसाधन विकास मंत्रालय के भीतर अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (AICTE) ने कहा है कि इंजीनियर्स को ये सच जानने की कोशिश करनी चाहिए कि क्या प्राचीन भारत में हेलिकॉप्टर और इलेक्ट्रो वॉल्टिक सेल्स थे या नहीं? क्या न्यूटन से पहले ऋषि-मुनियों ने खोज निकाला था गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत? परिषद ने कहा है कि इंजीनियरिंग को छात्रों को ऋषि अगस्त्य और ऋषि कणाद के वैज्ञानिक कामों को खारिज करने से पहले शोध कर उसकी सत्यता को जांचना होगा.
इसके साथ ही एआईसीटीई ने अगले सेशन से भारत विद्या भवन द्वारा प्रकाशित अपने सिलेबस मॉडल के तहत इसे वैकल्पिक सिलेबस के रूप में पढ़ाए जाने के लिए भारत विद्या सारप को मंजूरी दे दी है. कहा जा रहा है कि इससे छात्र भारतीय विज्ञान और दर्शन के इतिहास के बारे में जागरूक हो सकेंगे. बता दें कि इस सिलेबस को देश के कुल तीन हजार से अधिक टेक्निकल कॉलेजों में लागू किया जाएगा.
एआईसीटीई के इस फैसले वैज्ञानिकों के समुदाय का ध्यान अपनी ओर खींचा है. इसको लेकर मुंबई के वैज्ञानिक और होमी भाभा सेंटर फॉर साइंस एजुकेशन के फैकल्टी मेंबर अनिकेत सुले ने एआईसीटीई के चेयरमैन अनिल सहस्रबुद्धे को संबोधित एक ऑनलाइन याचिका भी शुरु की है. उन्होंने याचिका में कहा कि ‘साल 1974 में आईआईएससी के एरोनॉटिकल इंजीनियरिंग फैकल्टी, विमानिका शास्त्र पुस्तक के सभी दावों को खारिज कर दिया था. वैज्ञानिक समाज AICTE द्वारा अनुमोदित पुस्तक को छात्रों के भविष्य को प्रभावी ढंग से नुकसान पहुंचाने के रूप में देख रहा है. ऐसे में यह जरूरी है कि AICTE इस पुस्तक से समर्थन वापस ले.’
इसके बाद भारत विद्या भवन और एक अन्य प्रकाशक शशिबाला ने भी ऑनलाइन याचिका शुरु की जिसमें कहा गया कि विज्ञान के छात्रों के लिए कोर्स शुरू कर जा रहा है ताकि वह भारत बुद्धिमान मनुष्यों और ऋषियों के लिखे भारतीय ज्ञान की व्यवस्था से रुबरु हो सकें.
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