नई दिल्ली: प्राइवेट सेकक्टर में कंपनियां बदलने का चलन खूब होता है. ऐसा माना जाता है कि प्राइवेट सेक्टर में समय-समय पर कंपनियां बदलने से कर्मचारियों को काफी फायदा मिलता है और उनकी सैलरी में भी रेगुलर इजाफा होता रहता है. हालांकि, ये बात भी सही है कि प्राइवेट सेक्टर की कंपनियां अपने पुराने कर्मचारी को उस तरह की सैलरी या इंक्रिमेंट नहीं देती हैं, जितना वो नये कर्मचारी या फिर बाहर से आए किसी दूसरे व्यक्ति को दिया जाता है.
कई बार तो ऐसा भी होता कि जूनियर पद पर आया व्यक्ति अपने सीनियर से ज्यादा तनख्वाह लेता है. यही वजह है कि किसी कंपनी में ज्यादा समय तक काम करने वाले कर्मचारी की सैलरी दूसरी कंपनी से आए कर्मचारी की सैलरी से हर साल औसत कम होती है. हालांकि, इसके कई कारण है. एक ही कंपनी में दो वर्षों से अधिक रहने पर आप अपने जीवन में लगभग 50% या उससे अधिक कम कमा सकते हैं.
आज कल कर्मचारी कंपनी से खुश नहीं हैं. हर पल कर्मचारी अपनी कंपनी को जल्दी छोड़ दूसरी कंपनी में भागने के फिराक में रहते हैं. हैरान करने वाली बात है कि कर्मचारी हर साल औसत से कम सैलरी पाते हैं. इसके कई कारण हैं.
इसके लिए अब कर्मचारी भी ये मानने लगे हैं कि वो ज्यादा से ज्यादा कमाई तभी कर सकते हैं जब वो एक निश्चित अंतराल पर कंपनी बदलते रहेंगे. हालांकि, जॉब चेंज करने पर भी आज बहस होती है. 2014 में हुए शोध के आंकड़ों पर गौर किया जाए तो एक कर्मचारी 3% ग्रोथ की औसत उम्मीद कर सकता है.
यहां तक कि खराब प्रदर्शन वाले कर्मचारी 1.3% ग्रोथ की उम्मीद कर सकते हैं. कंपनी में बेस्ट प्रदर्शन करने वाला कर्मचारी 4.5 फीसदी ग्रोथ की उम्मीद कर सकता है. मगर हकीकत ये है कि कर्मचारियों की असल ग्रोथ 1 फीसदी से भी कम है.
हालांकि, इससे लिए कहीं से कर्मचारी या फिर उनकी योग्यता जिम्मेवार नहीं है. इसके लिए कंपनी का मैनेजमेंट जिम्मेवार है. हैरान करने वाली बात ये है कि कंपनी में रहते हुए कर्मचारी की सैलरी में वृद्धि एक फीसदी या उससे भी कम होती है. मगर जैसे ही वो वर्तमान कंपनी को छोड़कर दूसरी कंपनी में जाता है, उसकी सैलरी में 10 फीसदी से 20 फीसदी तक का इजाफा होता है. कभी-कभी तो कंपनियां 50 फीसदी हाइक भी दे देती हैं. हालांकि, ये कंपनी और कर्मचारी की योग्यता पर निर्भर करता है.
ऐसी स्थिति में जो कर्मचारी चालाक होते हैं और अपने फायदे देखते हैं उन्हें कहीं दिक्कत नहीं होती. मगर इस सिस्टम में सबसे बुरा होता है वैसे कर्मचारियों के साथ जो कंपनी के प्रति काफी लॉयल और सपर्पण दिखाते हैं. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि नए कर्मचारी मार्केट ट्रेंड के हिसाब से आते हैं और उन्हें कंपनियां अच्छा पे करती हैं और अपने पुराने कर्मचारियों को पुरानी सैलरी पर ही रखती है और हाइक के नाम पर महज लॉलीपॉप थमा देती हैं.
वर्कफोर्स डॉट कॉम के फॉर्मर एडिटर जॉन हॉलन के मुताबिक, एक समय था जब 5 फीसदी को औसत वार्षिक वेतन वृद्धि माना जाता था. हालांकि, मंदी के के समय मीडिया क द्वारा फैलाये गर डर की वजह से कंपनियों को एक परफेक्ट एक्जक्यूज मिल गया अपने कर्मचारियों को कम सैलरी देने के.
कई कंपनियों में काम कर चुके सीनियर हायरिंग मैनेजर बिथनी डिवाइन का कहना है कि जो लोग कंपनियां स्विच करते रहते हैं वो ज्यादा सैलरी पाते हैं. कंपनी में कई सालों से कार्यरत स्टेइंग कर्मचारी के साथ दिक्कत ये है कि वे कंपनी में बेस सैलरी से अपनी नौकरी की शुरुआत करते हैं और उनकी सैलरी में सालाना ग्रोथ उनकी करेंट सैली के हिसाब से होती है. अब यहां पर अक्सर दिक्कत ये आती है कि मैनेजर कर्मचारी के करेंट सैलरी में कितना फीसदी इजाफा कर सकता है. हालांकि, वही कर्मचारी जब दूसरी कंपनी में जाता है तो उसे अच्छा हाइक मिलता है.
समस्या ये भी है कि कंपनी हमेशा अच्छे टैलेंट की तलाश में रहती है, जब न्यू ओपनिंग में उन्हें अच्छे टैलेंट मिलते हैं तो वो ये नहीं देखते हैं कि उनसे सीनियर कर्मचारियों को वे कंपनी में कितना पैसा देते हैं, बल्कि उस वक्त वो ये देखते हैं कि इस टैलेंट को किसी भी कीमत पर कंपनी में ले लेना है. उस वक्त कंपनी कर्माचरी को एक नए टाइटल के साथ हायर करती है.
हालांकि, जॉब चेज करने में दिक्कत इस बात की भी आती है कि तुरंत-तुरंत जॉब चेंज करने से कंपनी के सामने कर्मचारी की एक निगेटिव छवि बनती है. लोग इस बात के लिए भी चिंतित होते हैं कि जल्दी-जल्दी जॉब चेंज करने से उनके रिज्यूम पर भी निगेटिव असर पड़ता है.
बहरहाल, यह तथ्य है कि कर्मचारी कम सैलरी पर काम कर रहे हैं. इसलिए कर्मचारियों के हाथ में कंपनी, अर्थव्यवस्था या फिर मैनेजमेंट के डिसीजन को बदले की क्षमता नहीं है, इसलिए वे जो कर सकते हैं, उनके हक में वही सही है. अब जब मार्केट की स्थिति ऐसी है तो इस माहौल में कर्मचारियों को ही अपना एफॉ़र्ट दिखाना होगा और जहां उन्हें अच्छी सैलरी मिले वहां उन्हें जाना चाहिए.