रांची: झारखंड में विधानसभा चुनाव की तारीख जैसे-जैसे नजदीक आ रही है, राज्य में सियासी तापमान बढ़ता जा रहा है. जहां एक ओर सत्ताधारी पार्टी जेएमएम और कांग्रेस फिर से सरकार में आने के लिए पूरी ताकत झोंके हुए है. वहीं, विपक्षी पार्टी बीजेपी ने कई राज्यों के मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्रियों को राज्य में चुनाव प्रचार के लिए भेजा हुआ है. भाजपा 5 साल के बाद फिर से झारखंड की सत्ता में आने के लिए व्याकुल है.
इस बीच हम आपको उन 5 सीटों के बारे में बताने जा रहे हैं जिन्हें झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) का गढ़ माना जा रहा है. इन सीटों पर बीजेपी का जीत काफी मुश्किल माना जा रहा है…
बरहेट विधानसभा सीट से झारखंड के सीएम और जेएमएम के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन पिछले 2 बार से विधायक है. इस सीट पर जेएमएम साल 1990 से कभी नहीं हारी है. यहां से जेएमएम के हेमलाल मुर्मू भी चार बार विधायक रह चुके हैं.
लिट्टीपाड़ा विधानसभा सीट को भी जेएमएम का गढ़ माना जाता है. यहां पर झारखंड मुक्ति मोर्चा साल 2005 से नहीं हारी है. करीब 40 फीसदी आदिवासी आबादी वाली इस सीट पर जेएमएम को हराना भाजपा के लिए काफी मुश्किल है.
शिकारीपाड़ा राज्य की एक आदिवासी रिजर्व सीट है. यहां से साल 1990 से एक ही उम्मीदवार नलिन सोरेन ने लगातार सात बार चुनाव जीत चुके हैं. नलिन अब दुमका से लोकसभा सांसद है. इस बार जेएमएम ने यहां से नलिन के बेटे आलोक सोरेन को उम्मीदवार बनाया है.
सरायकेला झारखंड की सबसे दिलचस्प सीटों में से एक है. यहां से पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन विधायक हैं. चंपई पहले जेएमएम में रह चुके हैं. उन्होंने हेमंत सोरेन का काफी करीबी माना जाता था. लेकिन कुछ महीनों पहले वह भाजपा में शामिल हो गए. इस सीट को जेएमएम को गढ़ माना जाता है. देखना होगा कि इस सीट पर जेएमएम अपना दबदबा बरकरार रख पाएगी या नहीं.
डुमरी सीट को भी जेएमएम का अभेद किला कहा जा सकता है. यहां पर 2005 से जेएमएम कभी भी नहीं हारी है. आदिवासी बहुल इस सीट पर जेएमएम के संस्थापक शिबू सोरेन की काफी पकड़ है. यहां पर वोटर प्रत्याशी को नहीं बल्कि तीर-धनुष निशान को देखर वोट देते हैं. बता दें कि तीर-धनुष जेएमएम का चुनाव चिन्ह है.
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