नई दिल्ली: रामनाथ कोविंद को जानने वाले बताते हैं कि मोदी जब कानपुर में कोविंद के घर पर ठहरे थे तो उन्हें संघ की बैठक में शामिल होने के लिए जयनारायण स्कूल जाना था. रामनाथ कोविंद से इस स्कूल की दूरी करीब एक किलोमीटर थी. कोविंद ने अपनी साइकिल निकाली और साइकिल पर ही मोदी को लेकर बैठक में पहुंच गए.
कहते हैं कि फिर तो ये सिलसिला करीब-करीब रोज़ का हो गया. मोदी जितने दिन वहां रुके उन्हें संघ की बैठक में पहुंचाने के लिए रामनाथ कोविंद सुबह-सुबह अपनी साइकिल निकालते और नरेंद्र मोदी को लेकर जयनारायण स्कूल पहुंचा देते.
रामनाथ कोविंद को करीब से जानने वाले ये भी बताते हैं कि पीएम मोदी और खुद के लिए कोविंद अपने घर से बनाया हुआ खाना लेकर जाते थे. दोनों साथ बैठकर खाना खाया करते थे. मोदी को कोविंद के घर की तुअर की दाल और चूल्हे की रोटी बेहद पसंद थी.
इस दौरान मोदी करीब 15 दिनों तक कानपुर में रुके. एक दिन मोदी ने रामनाथ कोविंद से बिठूर जाने की इच्छा जताई. बिठूर कानपुर से करीब 20 किलोमीटर की दूरी पर है और गंगा के किनारे बसा है. मोदी का मन देखकर रामनाथ कोविंद तुरंत तैयार हो गए.
कहते हैं कि मोदी और कोविंद दोनों साइकिल पर ही सवार होकर बिठूर के लिए निकले लेकिन रास्ते में साइकिल पंक्चर हो गई. कोविंद ने अपने किसी परिचित के घर पर साइकिल खड़ी की. फिर बाकी का रास्ता दोनों ने पैदल ही तय किया.
एक अक्टूबर 1945 को कानपुर देहात के इस छोटे से गांव परौख में जन्मे रामनाथ कोविंद का बचपन बेहद गरीबी में गुजरा. उनके पिता मैकूलाल खेती-किसानी के साथ छोटा-मोटा कारोबार करते थे लेकिन कोविंद का ख्वाब बचपन से ही बड़ा था. बचपन से ही उनके मन में कुछ बड़ा करने की चाहत थी.
रामनाथ कोविंद के दोस्त बताते हैं कि बचपन में जब उनके सारे दोस्त खेल में मशगूल होते थे तो वो घर के बाहर चबूतरे पर किताब खोलकर बैठ जाते थे. पढ़ाई में उनका मन खूब लगता था. कोविंद ने शुरुआती पढ़ाई गांव में की. फिर वो 8वीं तक खानपुर में पढ़े. उसके बाद वो कानपुर चले गए.
कानपुर के BNSD कॉलेज से उन्होंने इंटरमीडिएट किया. रामनाथ कोविंद IAS बनना चाहते थे. पहली और दूसरी कोशिश में उन्हें कामयाबी नहीं मिली लेकिन तीसरे अटेम्प्ट में उन्होंने सिविल सर्विसेज़ का एग्जाम क्लियर कर लिया. हालांकि एलाइड सेवा में जॉब मिलने की वजह से बाद में उन्होंने नौकरी छोड़ दी.
रामनाथ कोविंद ने इसके बाद वकालत का रुख किया. साल 1971 में वो बार काउंसिल ऑफ दिल्ली में रजिस्टर्ड हुए. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में उन्होंने 16 साल तक वकालत की. साल 1977 से लेकर 1979 तक वो दिल्ली हाई कोर्ट में केंद्र सरकार के वकील रहे.
वो साल 1974 का मई महीना था जब रामनाथ कोविंद की ज़िंदगी में उनकी पत्नी के तौर पर सविता ने दस्तक दी. 30 मई 1974 को सविता कोविंद के साथ उनकी शादी हुई. परिवार में पत्नी के अलावा एक बेटा प्रशांत दिल्ली में बिजनेस करता है. बेटी स्वाति एयर इंडिया में कार्यरत है.
सादगी से जीवन जीने वाले कोविंद का खान-पान भी उतना ही सादा है. उन्हें लौकी और पालक की सब्जी बेहद पसंद है. पहनावे की बात करें तो धोती-कुर्ता और कुर्ता-पायजामा पहनना उन्हें सबसे ज्यादा अच्छा लगता है. ये पहला मौका है जब जब आजादी के बाद देश को यूपी से कोई चुना हुआ राष्ट्रपति मिला है. इससे पहले साल 1969 में यूपी से मोहम्मद हिदायतुल्ला सिर्फ 24 दिन के लिए कार्यवाहक राष्ट्रपति बने थे.
रामनाथ कोविंद के बारे में कहा जाता है कि वो बहुत कम बोलते हैं और जब बोलते हैं तो अच्छा बोलते हैं लेकिन उनके पक्ष में सबसे अहम बात ये है कि वो कानून के अच्छे जानकार हैं. संविधान के एक्सपर्ट हैं और बतौर राज्यपाल उनके पास अच्छा राजनैतिक अनुभव भी है. लिहाजा वो न सिर्फ संविधान के अच्छे संरक्षक होंगे बल्कि उनका कार्यकाल भी यादगार होगा. देश उनसे ऐसी उम्मीद रखता है.
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