नई दिल्ली: सड़क पर सफर करते समय कभी ना कभी हर कोई किसी हादसे का गवाह जरुर बनता है. लेकिन हादसे का शिकार हुए इंसान की मदद के लिए कितने हाथ उठते हैं ये चिंता का विषय है. कितनी ही गाड़ियां गुज़रती हैं, धीमी होती हैं, खिड़की का शीशा नीचे जाता है. आंखें हादसे के पीड़ित को देखती हैं लेकिन दिमाग शायद उसका दर्द नहीं देख पाता और गाड़ी आगे बढ़ जाती है.
किसी अपने के साथ हादसे की खबर सुनकर हम कितने बेचैन हो जाते है. जहां होते हैं वही से उसी हाल में दौड़ पड़ते है. लेकिन जब कोई पराया सड़क पर तड़पता रहता है तो ऐसा नहीं होता? आज का
सवाल हर देश के हर उस
नागरिक से जो कभी ना कभी, किसी ना किसी हादसे का गवाह बना और उसके हाथ मदद के लिए नहीं उठे.
क्यों हम चुपचाप खड़े होकर या तो तमाशा देखने लगते है या फिर अनदेखी करके आगे बढ जाते है? हमारी ये हरकत क्यों हमें अंदर से नहीं झकझोरती. उस पल हमें क्यों नहीं लगता कि जिंदा होकर भी हम मुर्दा है. हम ये क्यो भूल जाते है कि उस तड़पते इंसान को अगर हमारी और आपकी मदद मिल जाती तो उसकी जिंदगी बच जाती. ना सिर्फ उसकी बल्कि उसके साथ-साथ हम उसके अपनों की भी जिंदगी को बचा लेते.
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