नई दिल्ली: क्या आप टीवी देखते हुए बार बार चैनल बदलते अथवा रिमोट दबाते हैं? मोबाइल पर कभी कॉल, कभी इंस्टाग्राम तो कभी व्हाट्सएप चलाते हैं? इतना कुछ करने के बाद आप लोगों से इस बात की शिकायत भी करते हैं, कि अरे मैं तो किसी एक चीज पर फोकस ही नहीं कर पा रहा […]
नई दिल्ली: क्या आप टीवी देखते हुए बार बार चैनल बदलते अथवा रिमोट दबाते हैं? मोबाइल पर कभी कॉल, कभी इंस्टाग्राम तो कभी व्हाट्सएप चलाते हैं? इतना कुछ करने के बाद आप लोगों से इस बात की शिकायत भी करते हैं, कि अरे मैं तो किसी एक चीज पर फोकस ही नहीं कर पा रहा हूं. समझ नहीं आ रहा है करूं? अगर आपके साथ भी ऐसा ही हो रहा है तो आपका दिमाग पॉपकॉर्न ब्रेन सिंड्रोम (Popcorn Brain syndrome) का शिकार हो चुका है.
बता दें सोशल मीडिया पर ज्यादा एक्टिव रहने वाले लोगों को यह सिंड्रोम ज्यादा प्रभावित कर रहा है और दिन-प्रतिदिन इससे पीड़ित लोगों की संख्या बढ़ती ही जा रही है. यह सिंड्रोम दिमाग पर असर करता है और दिमाग के सोचने व समझने की क्षमता को प्रभावित करता है. इन दिनों जब रील स्क्रॉलिंग तेजी से बढ़ रही है, तब हम आपको बताने जा रहे हैं पॉपकॉर्न ब्रेन सिंड्रोम क्या है. दरअसल यह बीमारी सोशल मीडिया और डिजिटाइजेशन से यह बढ़ रही है. एक्सपर्ट के अनुसार, 2011 में वॉशिंगटन विश्वविद्यालय के रिसर्चर डेविड लेवी ने इस समस्या को “पॉपकॉर्न सिंड्रोम” नाम दिया था.
एक मेंटल हेल्थ एक्स्पर्ट ने बताया कि यह एक ऐसा सिंड्रोम है. जिससे दिमाग की उत्सुकता बहुत तेज हो जाती है. उत्सुकता को शांत करने के लिए दिमाग हर तरफ भागता रहता है. इस वजह से दिमाग में धैर्य की कमी, और जरूरी फोकस की कमी हो रही है. जिस वजह से दिमाग डिप्रेशन का शिकार हो रहा है. नतीजतन दिमाग का फोकस कम हो जाता है. पॉपकॉर्न ब्रेन सिंड्रोम दिमाग में अस्थिरता पैदा कर रहा है.
मेंटल हेल्थ एक्स्पर्ट ने आगे कहा कि पॉपकॉर्न ब्रेन की वजह लोगों के सीखने, याद करने और संवेदनाओं को महसूस करने की प्रवृत्ति पर गहरा असर पड़ रहा है. इससे मेमोरी पर बहुत बुरा असर पड़ता है. इस वजह से मनुष्य किसी भी विषय पर गहरी जानकारी लेने में नाकामयाब रहता है. इसको ठीक करने के लिए कुछ मेंटल एक्टिविटी करने की आवश्यकता है. हॉबीज पर फोकस कीजिए. अखबार पढ़ने की आदत को डिवेलप कीजिए. एक चीज पर फोकस करने का प्रयास कीजिए.