हाल ही में एक रिपोर्ट सामने आई है, जिसमें पाया गया कि कम सैलरी पाने वाले कर्मचारियों की मानसिक सेहत तेजी से खराब हो रही है। रिपोर्ट में किए गए सर्वे में पाया गया कि 2021 के बाद से दफ्तरों में बर्नआउट का उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है।
नई दिल्ली: हाल ही में एक रिपोर्ट सामने आई है, जिसमें पाया गया कि कम सैलरी पाने वाले कर्मचारियों की मानसिक सेहत तेजी से खराब हो रही है। यह स्थिति तनाव, चिंता, डिप्रेशन और बर्नआउट जैसी समस्याओं को जन्म दे रही है। इसके पीछे मुख्य कारण कम आय के चलते परिवार की जरूरतें पूरी करने के लिए अधिक काम का दबाव है, जिससे मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर पड़ता है।
रिपोर्ट में किए गए सर्वे में पाया गया कि 2021 के बाद से दफ्तरों में बर्नआउट का उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है। अमेरिका, ब्रिटेन और अन्य 6 देशों के 10,000 फुल-टाइम कर्मचारियों पर किए गए इस सर्वे में 40% से अधिक लोगों ने बर्नआउट की समस्या स्वीकार की। 2021 में यह आंकड़ा 38% था, जो अब बढ़कर 42% हो गया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ने भी इस पर चिंता जताई है। उनके अनुसार, कर्मचारियों में बढ़ते तनाव के कारण हर साल कार्य के लाखों घंटे बर्बाद हो रहे हैं, जिससे वैश्विक अर्थव्यवस्था को लगभग 1 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान हो रहा है।
शोध में यह भी पाया गया है कि पुरुषों की तुलना में महिलाओं पर इसका अधिक प्रभाव पड़ रहा है। रिपोर्ट के अनुसार, 2019 के बाद महिलाओं में बर्नआउट के मामले दोगुने हो गए हैं। कम सैलरी, प्रमोशन न मिलना और पारिवारिक जिम्मेदारियों का दबाव महिलाओं में मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का बड़ा कारण बन रहा है।
कम आय के अलावा, सोशल मीडिया पर अधिक समय बिताना भी मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर डाल रहा है। इससे कर्मचारियों की पेशेवर और व्यक्तिगत जीवन दोनों प्रभावित हो रही है। वहीं फाइनेंस सेक्टर में यह समस्या अधिक देखने को मिल रही है। भारत समेत 10 देशों में हुई एक रिसर्च में यह पाया गया कि 78% कर्मचारी अपनी नौकरी में खुद को बेहतर स्थिति में नहीं देख पा रहे हैं। इसका सीधा असर न केवल उनकी मानसिक सेहत पर पड़ता है बल्कि उनके काम पर इसका असर पड़ रहा है.
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