देश में हर साल 2 लाख से ज्यादा किडनी ट्रांसप्लांट की जरूरत होती है, लेकिन रिपोर्ट के मुताबिक मुश्किल से 15-20 हजार किडनी ही
Kidney Racket: देश में हर साल 2 लाख से ज्यादा किडनी ट्रांसप्लांट की जरूरत होती है, लेकिन रिपोर्ट के मुताबिक मुश्किल से 15-20 हजार किडनी ही पूरे साल में ट्रांसप्लांट हो पाती हैं। बाकी के 1 लाख 80 हजार मरीज या तो डायलिसिस पर होते हैं या फिर अवैध तरीके से किडनी ट्रांसप्लांट करवाते हैं। इस कमी की वजह से किडनी रैकेट फल-फूल रहा है।
एक रिपोर्ट के अनुसार, एक डॉक्टर ने बताया कि किडनी रैकेट की वजह से किडनी की मांग और आपूर्ति के बीच भारी अंतर होता है। सालाना 2 लाख की जरूरत में से केवल 15-20 हजार लोगों की ही किडनी ट्रांसप्लांट हो पाती है।
किडनी ट्रांसप्लांट का सक्सेस रेट अन्य अंगों की तुलना में अधिक है। डॉ. के अनुसार, दो किडनी होने के कारण डोनर भी आसानी से मिल जाते हैं। किडनी सर्जरी के लिए बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर और विशेषज्ञता की जरूरत होती है। छोटे शहरों में इस सर्जरी के लिए प्रोटोकॉल का पालन नहीं किया जाता, जिससे किडनी रैकेट ज्यादातर छोटे शहरों में सक्रिय होते हैं।
डॉक्टर बताते हैं कि किडनी रैकेट का सारा खेल डॉक्यूमेंट्स के जरिए होता है। कमेटी को डोनर और रेसिपिएंट के बीच के रिश्ते की जानकारी नहीं होती। फर्जी डॉक्यूमेंट्स के आधार पर फाइल अप्रूव की जाती है। फर्जी आधार कार्ड, वोटर कार्ड, पासपोर्ट आदि तैयार किए जाते हैं।
अगर पति को किडनी चाहिए तो पत्नी को डोनर दिखाया जाता है और उसके ब्लड ग्रुप को पति के ब्लड ग्रुप से मैच कर दिया जाता है। असल डोनर कोई और ही होता है और रिपोर्ट में मरीज की पत्नी को डोनर बना दिया जाता है। अप्रूवल कमेटी के पास इन चीजों को वेरिफाई करने का कोई खास तरीका नहीं होता।
किडनी रैकेट विदेशों में भी सक्रिय है। विदेशी मरीजों के साथ फर्जीवाड़ा ज्यादा होता है क्योंकि डॉक्यूमेंट्स वेरीफाई करने में दिक्कत होती है। किडनी ट्रांसप्लांट का खर्च 7 से 8 लाख रुपये होता है, जबकि विदेशी मरीजों को 20-25% ज्यादा देना पड़ता है।
किडनी ट्रांसप्लांट में डोनर लिविंग कमेटी की मंजूरी के बिना सर्जरी नहीं होती। इस कमेटी में मरीज का इलाज करने वाले डॉक्टर शामिल नहीं होते हैं।
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