नई दिल्ली। हर घर में छोटा फ़र्स्ट ऐड बॉक्स जरुर होता है. सेहत का ध्यान रखने वाले जब भी शारीरिक परेशानी महसूस करते है, तो सबसे पहले थर्मामीटर से बॉडी का टेम्प्रेचर पता लगाते है और अपने डॉक्टर से सलाह लेते है. लगभग हर घर में अब डिजिटल थर्मामीटर या इलेक्ट्रॉनिक थर्मामीटर का यूज़ किया […]
नई दिल्ली। हर घर में छोटा फ़र्स्ट ऐड बॉक्स जरुर होता है. सेहत का ध्यान रखने वाले जब भी शारीरिक परेशानी महसूस करते है, तो सबसे पहले थर्मामीटर से बॉडी का टेम्प्रेचर पता लगाते है और अपने डॉक्टर से सलाह लेते है. लगभग हर घर में अब डिजिटल थर्मामीटर या इलेक्ट्रॉनिक थर्मामीटर का यूज़ किया जा रहा है. देखते ही देखते मर्करी वाले थर्मामीटर घरों में बिल्कुल मौजूद नही है.
कई देशों में मर्करी थर्मामीटर को बैन कर दिया गया है. इनमे पाए जाने वाले हानिकारक पदार्थ के कारण इन्हें फीवर थर्मामीटर भी कहा जा रहा है. शीशे के थर्मामीटर में बंद लिक्विड पारा यानी मर्करी फीवर का सटीक स्तर बताने में सक्षम है लेकिन जैसे ही थर्मामीटर टूटता है. मर्करी रूम टेम्प्रेचर पर जेहरीली भाप बनकर हवा में घुल जाता है. सांस के साथ यह खून, फेफड़े और दिमाग तक पहुँचता है और बेहद गंभीर रूप से बीमार कर देता है.
स्वयं सेवी संस्था टॉक्सिक्स लिंक्स की एक रिपोर्ट में जानकारी दी गई की विदेशों में लोग मर्करी को लेकर बहुत सचेत रहते है. किसी भी अस्पताल या घर में मर्करी थर्मामीटर टूटता है तो तुरंत उस कमरे को 2-3 दिन तक सील कर दिया जाता है. भारत में इस दिशा में जागरूकता की कमी है.
भारत में भले ही ज़्यादातर लोग मर्करी से होने वाले नुकसान के बारे में ना जानते हो लेकिन झंझट के कारण कई लोगों ने इस थर्मामीटर से दूरी बना ली है. डिजिटल थर्मामीटर से बॉडी का टेम्प्रेचर नापना मर्करी थर्मामीटर की तुलना में कहीं ज़्यादा आसान है. यही वजह है कि धीरे- धीरे घरों में पारा वाले थर्मामीटर मौजूद नही है. यह ज़रूरी है की हमें लोगों में इसकी बारे में जागरूकता फैलानी चाहिए जिससे दुर्घटना को रोका जा सके.