Covid Warriors story : कोरोना वॉरियर ने हारी कोरोना से जंग, दुनिया को कहा अलविदा

Covid Warriors story कोरोना के इस संक्रमण काल में डॉक्टर्स यानी की हमारे कोरोना वॉरियर्स सबसे ज्यादा मददगार साबित हुए हैं. बिना अपने सेहत के चिंता किए इन कोरोना वॉरियर्स ने लोगों की सेवा की. ऐसी ही एक कोरोना वॉरियर हैं डॉ शारदा सुमन, जिन्होंने कोरोना के दौरान गर्भवती अवस्था में भी काम किया. लेकिन […]

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Covid Warriors story : कोरोना वॉरियर ने हारी कोरोना से जंग, दुनिया को कहा अलविदा

Aanchal Pandey

  • September 8, 2021 10:10 pm Asia/KolkataIST, Updated 3 years ago

Covid Warriors story

कोरोना के इस संक्रमण काल में डॉक्टर्स यानी की हमारे कोरोना वॉरियर्स सबसे ज्यादा मददगार साबित हुए हैं. बिना अपने सेहत के चिंता किए इन कोरोना वॉरियर्स ने लोगों की सेवा की. ऐसी ही एक कोरोना वॉरियर हैं डॉ शारदा सुमन, जिन्होंने कोरोना के दौरान गर्भवती अवस्था में भी काम किया. लेकिन अब डॉ शारदा सुमन इस दुनिया को अलविदा कह जा चुकी हैं.

जानिए कौन थी डॉ शारदा सुमन

डॉ शारदा सुमन ने कोरोना संक्रमण के दौर में गर्भवती अवस्था में भी अपनी ड्यूटी पूरी की. डॉ शारदा सुमन जच्चा-बच्चा वार्ड की डॉक्टर हैं, उन्होंने कोरोना के समय में निस्वार्थ भाव से मरीजों की सेवा की. इस दौरान वे कोरोना से संक्रमित भी हुई लेकिन उन्होंने अपनी ड्यूटी नहीं छोड़ी. बता दें कि 14 अप्रैल को डॉ शारदा सुमन कोविड पॉज़िटिव हुईं थी जिसके बाद 18 अप्रैल को सांस की तकलीफ़ के बाद उन्हें हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया. उन्हें सांस लेने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा. 1 मई को बच्ची को बचाने के लिए और डॉ शारदा को साँस लेने में राहत देने के लिए सिजेरियन ऑपरेशन कर डिलीवरी हुई. 9 मई को डॉ शारदा सुमन कोविड निगेटिव हुईं और उन्हें नॉन-कोविड आईसीयू में शिफ़्ट किया गया और वेंटिलेटर पर रखा गया. लेकिन, डॉ शारदा की मुश्किलें यहाँ खत्म नहीं हुई, उन्हें सांस लेने में अब भी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा था, जिसके चलते 20 मई को चेस्ट ट्यूब डाला गया. इतना ही नहीं डॉ शारदा को इक्मो मशीन पर रखा गया, जो कि एक आर्टिफिशियल लंग मशीन है, लेकिन फिर भी इसका कोई फायदा नहीं हुआ और 4 सितम्बर को डॉ शारदा ने अपनी आखिरी साँसे ली.
डॉ शारदा के बारे में उनकी साथी शमीना कहती हैं कि, “डॉ शारदा आठ महीने की गर्भवती थीं लेकिन कोरोना की दूसरी लहर में स्टाफ़ की कमी की वजह से उन्होंने काम करना सही समझा और लीव पर नहीं गईं. उन्हें कोरोना जैसी महामारी में अपनी ज़िम्मेदारी का एहसास था.”

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