नई दिल्ली. लोग श्री कृष्ण के बारे में तो बहुत जानते है लेकिन सदा उनके साथ रहने वाले श्री बलराम जी बारे में कम ही जानते है. आपको बता दें कि श्री कृष्ण बलदाऊ को बहुत मानते थे. उन्हें सदा अपने साथ ही रखते.
बलराम का जन्म चंद्रवंश में हुआ. इनके पिता है वासुदेव और माता है रोहिणी. जब कंस अपनी बहन को रथ में बिठा कर वसुदेव के घर ले जा रहा था तभी आकाशवाणी हुई और उसे पता चला कि उसकी बहन का आठवाँ संतान ही उसे मारेगा. कंस ने अपनी बहन को कारागार में बंद कर दिया और क्रमश: 6 पुत्रों को मार दिया, 7वें पुत्र के रूप में नाग के अवतार बलराम जी थे जिसे श्री हरि ने योगमाया से रोहिणी के गर्भ में स्थापित कर दिया.
कौंन थे बलराम
वसुदेव की अर्द्धागिनी तथा बलराम की माता का नाम रोहिणी था. इन्होंने देवकी के सातवें गर्भ को दैवीय विधान से ग्रहण कर लिया था और उसी से बलराम की उत्पत्ति हुई थी. ऋषि कश्यप वासुदेव के रूप में अगला जन्म प्राप्त किया और उनकी पत्नी कुद्रू जिनके गर्भ से नाग वंश उत्पन्न हुआ उन्होंने रोहिणी के रूप में जन्म लिया. यही कारन है की बलराम जी को नाग जाती का वंशज माना जाता है.
बलराम ने युद्ध क्यों नहीं किया?
भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम, पांडवों की छावनी में अचानक पहुंचे. दाऊ भैया को आता देख श्रीकृष्ण, युधिष्ठिर आदि बड़े प्रसन्न हुए. सभी ने उनका आदर किया. सभी को अभिवादन कर बलराम, धर्मराज के पास बैठ गए. फिर उन्होंने बड़े व्यथित मन से कहा कि कितनी बार मैंने कृष्ण को कहा कि हमारे लिए तो पांडव और कौरव दोनों ही एक समान हैं.
दोनों को मूर्खता करने की सूझी है. इसमें हमें बीच में पड़ने की आवश्यकता नहीं, पर कृष्ण ने मेरी एक न मानी. भीम और दुर्योधन दोनों ने ही मुझसे गदा सीखी है। दोनों ही मेरे शिष्य हैं। दोनों पर मेरा एक जैसा स्नेह है. इन दोनों कुरुवंशियों को आपस में लड़ते देखकर मुझे अच्छा नहीं लगता अतः में तीर्थयात्रा पर जा रहा हूं.