नई दिल्ली. हर एक दंपत्ति की ख्वाहीश होती है कि उसका संतान विलक्षण हो, भाग्यवान हो, हिस्ट-पुस्ट हो, ओजस्वी हो. हालांकि आमतौर पर ऐसा होता नहीं है. इसके लिए एक मां को गर्भधान संस्कार का बखूबी पालन करना पड़ता है.
संस्कारों की बात करें तो इसका संबंध पूर्व जन्म से भी है. इन संस्कारों को पालन से आपका और आपके संतान का भाग्य संवर सकता है. गौतम स्मृति में 40 प्रकार के संस्कारों का उल्लेख मिलता है, वहीं व्यास स्मृति और हिन्दू धर्म शास्त्रों में मुख्य रूप से 16 संस्कारों का वर्णन किया गया है.
सबसे पहला संस्कार गर्भधान बताया गया है, जिसके मुताबिक यदि आपकी ख्वाहीश उत्तम संतान की है तो गर्भधारण तभी करें जब अशुद्ध रक्त पूर्णतः बंद हो जाए. दिन में भूलकर भी न करें गर्भधान, जब भी करें रात में ही करें. दिन में किया गया गर्भदान वाला संतान कमजोर होता है.
गर्भधान करने का उचित समय अशुद्ध रक्त रुकने के बाद चौथी और 16वीं रात्री के बीच है. चौथी रात्री को भी किया गया गर्भधान अच्छा नहीं माना गया है. हालांकि 16वीं रात्री को किया गया गर्भधान विलक्षण संतान को देता है.