नई दिल्ली : देशभर में RERA यानी कि रियल एस्टेट रेग्युलेटरी कानून लागू हो गया है. कहा जा रहा है कि सरकार ने इस कानून को खरीदारों के हितों की रक्षा के लिए वजूद में लाया है. क्या वाकई ऐसा है, क्या इस रेरा से बिल्डरों की मनमानी का अब तक शिकार हो रहे ग्राहकों को राहत मिलेगी या फिर ये कानून भी बड़े-बड़े बिल्डरों के हाथों का खिलौना बन जाएगा.
दरअसल भारत में रियल एस्टेट कारोबार की बात करें तो देश में तकरीबन 76 हजार रियल एस्टेट कंपनियां हैं. हर साल 10 लाख लोग मकान खरीदते हैं. 2011 से 15 के आकड़ों पर ही गौर करें तो हर साल 2,349 से 4,488 प्रॉजेक्ट लॉन्च हुए और इस दौरान 13.70 लाख करोड़ का निवेश हुआ.
जाहिर है इंडस्ट्री बड़ी है और लेन-देन भी बड़ा है. इसी वजह से जब सरकार ने रेरा को लाने का मन बनाया तो इसमें मतभेद नजर आए, लेकिन सरकार ने जब इस कानून पर अपनी कटिबद्धता दिखाई तो रियल एस्टेट ग्रुप और बिल्डर्स इस रेग्युलेशन को हल्का करने की कोशिशों में जुट गए, जिसकी वजह से इसको लागू करने में दिक्कतें आती रहीं हैं.
जैसे अभी तक बिल्डर्स को कुल पैसे जो सेल्स से मिलते थे उनका एक बड़ा हिस्सा वो जमीन खरीदने में इस्तेमाल कर लेते थे. ओरिजिनल बिल में था कि इस पैसे का 70 फीसदी एक अलग एकाउंट में जमा होगा जिसका प्रयोग सिर्फ कंस्ट्रक्शन के लिए होगा.
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