नई दिल्ली: रक्षा बंधन, जिसे राखी का त्योहार भी कहा जाता है, भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक है। यह त्योहार भाई-बहन के पवित्र रिश्ते का प्रतीक है, जिसमें बहनें अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधती हैं और उनकी लंबी उम्र और समृद्धि की कामना करती हैं। बदले में, भाई अपनी बहनों की रक्षा करने का वचन देते हैं। रक्षा बंधन का इतिहास और महत्व कई पौराणिक कहानियों और धार्मिक मान्यताओं में गहराई से जुड़ा हुआ है। आइए जानते हैं रक्षा बंधन से जुड़ी 10 प्रमुख पौराणिक मान्यताएं
महाभारत के अनुसार, एक बार श्रीकृष्ण की उंगली कट गई थी, जिससे खून बहने लगा। द्रौपदी ने तुरंत अपनी साड़ी का टुकड़ा फाड़कर श्रीकृष्ण की उंगली पर बांध दिया। इस पर श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को वचन दिया कि वह संकट के समय उनकी रक्षा करेंगे। इसी वचन के कारण श्रीकृष्ण ने चीरहरण के समय द्रौपदी की लाज बचाई। इस कहानी को रक्षा बंधन के रूप में भी देखा जाता है, जहां एक रक्षा के बंधन का निर्माण हुआ।
पुराणों के अनुसार, जब इंद्र देव दानवों के साथ युद्ध में पराजित हो रहे थे, तब उनकी पत्नी शुचि ने एक पवित्र धागे का निर्माण किया और इसे इंद्र की कलाई पर बांध दिया। इस धागे की शक्ति से इंद्र देव ने युद्ध में विजय प्राप्त की। यह कहानी बताती है कि रक्षा बंधन का धागा न केवल प्रेम का प्रतीक है, बल्कि यह संकटों से रक्षा करने की शक्ति भी रखता है।
यमराज और यमुनाजी के बीच भी रक्षा बंधन की कथा जुड़ी हुई है। मान्यता है कि यमुनाजी ने यमराज को राखी बांधी थी, और यमराज ने उन्हें अमरत्व का वरदान दिया। इसके बाद यमराज ने प्रतिवर्ष अपनी बहन यमुनाजी से मिलने का वचन दिया। तभी से बहन द्वारा भाई को राखी बांधने की परंपरा चली आ रही है।
भागवत पुराण के अनुसार, जब भगवान विष्णु ने वामन अवतार धारण कर राजा बली से तीन पग भूमि मांगी, तब उन्होंने बली के पास रहने का वचन दिया। परंतु लक्ष्मी जी को अपने पति के बगैर अच्छा नहीं लगा, तो उन्होंने बली के पास जाकर उसे राखी बांध दी और बदले में अपने पति को मांग लिया। इस प्रकार रक्षा बंधन से धन और सौभाग्य का संबंध भी जुड़ गया। इसके अलावा जिस तरह तीन पग भूमि को दान का वादा राजा बली ने जल छोड़कर लिया था। इसी तरह से रक्षा बंधन का पर्व भी सभी भाई अपनी बहन की रक्षा करने का संकल्प लेते हैं। इस दिन हाथों में मौली बांधकर बहन या भाई को दिए गए संकल्प का उल्लंघन करना संकट में डाल सकता है।
कई पुराणों में इस बात का उल्लेख मिलता है कि माता पार्वती ने भगवान शिव से रक्षा बंधन का महत्व पूछा था। शिव ने बताया कि यह पर्व स्नेह, प्रेम, और सुरक्षा का प्रतीक है, जो भाई-बहन के रिश्ते को और अधिक मजबूत करता है। इस कारण से रक्षा बंधन की परंपरा का प्रचलन हुआ। इसके अलावा शास्त्रों के अनुसार ऐसा माना जाता है कि हाथों में मौली बांधने के बाद मौली के पवित्र और शक्तिशाली बंधन का हमें अहसास हुआ है। इसको बांधने के बाद मन में शांति और पवित्रता बनी रहती है। इससे बुरे विचार व्यक्ति के मन और मस्तिष्क में प्रवेश नहीं करते हैं।
ऐतिहासिक मान्यताओं के अनुसार और इसके अलावा शास्त्रों के अनुसार ऐसा माना जाता है कि हाथों में मौली बांधने के बाद मौली के पवित्र और शक्तिशाली बंधन का हमें अहसास हुआ है। इसको बांधने के बाद मन में शांति और पवित्रता बनी रहती है। इससे बुरे विचार व्यक्ति के मन और मस्तिष्क में प्रवेश नहीं करते हैं।
संतोषी माता की कथा के अनुसार, रक्षा बंधन के दिन संतोषी माता का व्रत रखने से जीवन में संतोष और सुख की प्राप्ति होती है। यह व्रत करने से भाइयों को जीवन में खुशहाली मिलती है, और बहनों को उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है।
ऐसा माना जाता है कि राखी के रूप में मौली या कलावा बांधने का प्रचलन प्राचीनकाल से ही चला आ रहा है। हाथ के मूल में बनी हुई 3 रेखाओं को जिनको मणिबंध कहते हैं, वह जीवनरेखा, भाग्य का उद्गम स्थल भी मणिबंध ही है। ऐसा कहा जाता है कि इन तीनों रेखाओं के अंदर त्रिविध तापों जैसे कि दैहिक, दैविक व भौतिक आदि को मुक्त करने की शक्ति रहती है।न इन मणिबंधों के नाम ब्रह्मा विष्णु और शिव हैं। इसी तरह से सरस्वती लक्ष्मी और शक्ति का भी यहां साक्षात वास होता है। जब हम अपने हाथों में कलावा का मंत्र रक्षा हेतु पढ़कर बांधते हैं तो त्रिदेवों व त्रिशक्तियों को यह तीन धागों का सूत्र समर्पित हो जाता है।
पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक ऐसा माना जाता है कि जिस समय महाभारत का युद्ध होने वाला था तब युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से एक प्रश्न किया था कि वह इन संकटों को कैसे पार करेंगे। इसके जवाब में भगवान कृष्ण ने युधिष्ठिर को राखी का त्योहार उनकी तथा उनकी सेना की रक्षा के लिए मनाने की सलाह दी थी।
पौराणिक मान्यताएं हैं कि श्रावण की पूर्णिमा अर्थात उत्तर भारत में रक्षा बंधन वाले दिन ही राखी का पर्व बड़े धूम-धाम से मनाया जाता है। परंतु दक्षिण भारत के कुछ समुद्री क्षेत्रों में नारियल पूर्णिमा का त्योहार मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि यह त्योहार मछुआरों का होता है। ऐसा माना जाता है कि इसी दिन से मछुआरों द्वारा मछली पकड़ने की शुरुआत हुई थी। इतना ही नहीं इसी दिन से भगवान इंद्र और वरुण की पूजा करने से करते हैं। भगवान इंद्र और वरुण की पूजा करने के लिए समुद्र किनारे केल के पत्तों को अर्पित किया जाता है। इसलिए राखी वाले दिन को वहां नारियल पूर्णिमा भी कहा जाता है। यह त्योहार दक्षिण भारत में समाज का हर वर्ग के लोग मनाते हैं। इस दिन जिन्होंने जनेऊ धारण किया हुआ है, वह अपना जनेऊ बदलते हैं। इसे दिन को श्रावणी या ऋषि तर्पण भी कहा जाता है।
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