नई दिल्ली: अहोई अष्टमी का व्रत हिंदू धर्म में विशेष महत्त्व रखता है, खासकर उन महिलाओं के लिए जो संतान प्राप्ति की कामना रखती हैं। 2024 में अहोई अष्टमी 20 अक्टूबर को मनाई जाएगी। इस दिन माताएं अपनी संतान की लंबी उम्र, सुख और समृद्धि के लिए व्रत रखती हैं। साथ ही जिन महिलाओं को संतान सुख नहीं प्राप्त हुआ, वह भी इस व्रत को कर सकती हैं, जिससे उनके जीवन में संतान का आगमन होता है।
अहोई अष्टमी का व्रत विशेष रूप से संतान प्राप्ति और संतान की भलाई के लिए रखा जाता है। माना जाता है कि इस दिन व्रत करने से माता अहोई प्रसन्न होती हैं और संतान के जीवन में सुख, शांति और लंबी आयु का आशीर्वाद देती हैं। जो महिलाएं संतान सुख की कामना करती हैं, उनके लिए यह व्रत बेहद फलदायी माना जाता है।
एक समय की बात है, एक महिला अपनी संतान के लिए घर के पास जंगल में मिट्टी खोदने गई। मिट्टी खोदते समय अनजाने में उसकी खुरपी से एक स्याहू (गर्भिणी गिलहरी) के बच्चे की मृत्यु हो गई। यह देखकर वह महिला बहुत दुखी हुई और घर लौट आई। उसी रात उसे सपना आया कि उसके द्वारा हुई गलती के कारण उसकी संतान को भी नुकसान हो सकता है। महिला ने स्याहू से क्षमा मांगी और अहोई माता का व्रत रखने का संकल्प लिया। कुछ समय बाद माता अहोई की कृपा से उसकी संतान की आयु बढ़ गई और सभी दुख समाप्त हो गए। तभी से अहोई अष्टमी का व्रत संतान की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए रखा जाने लगा।
वैदिक पंचांग के मुताबिक 24 अक्टूबर सुबह 01:20 पर कार्तिक मास के कृष्ण पक्षी अष्टमी तिथि शुरू होगी और 25 अक्टूबर सुबह 01:55 पर इस तिथि का समापन होगा। ऐसे में 24 अक्टूबर 2024 गुरुवार के दिन अहोई अष्टमी व्रत का पालन किया जाएगा। शाम 05:40 से शाम 06:55 के बीच अहोई अष्टमी की पूजा का शुभ मुहूर्त रहेगा और तारा दर्शन का समय शाम 06:08 तक रहेगा। इसके अलावा रात्रि 11:55 तक चंद्र उदय का समय रहेगा। इतना ही नहीं सर्वार्थ सिद्धि का निर्माण और अमृत सिद्धि योग बन रहा है, जो सुबह 06:32 से 25 अक्टूबर सुबह 06:32 तक रहेगा।
1. स्नान और संकल्प: सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इसके बाद संतान की भलाई और सुख के लिए व्रत का संकल्प लें।
2. अहोई माता की तस्वीर: पूजा स्थल पर अहोई माता की तस्वीर या चित्र स्थापित करें। अगर चित्र उपलब्ध न हो, तो दीवार पर अहोई माता और स्याहू (गर्भिणी गिलहरी) की आकृति बनाएं।
3. पूजा सामग्री: पूजा के लिए रोली, चावल, दूध, जल, फूल, मीठे पकवान और तांबे का कलश आवश्यक होते हैं। साथ ही मिट्टी का दीपक जलाना चाहिए।
4. पूजा प्रक्रिया: सबसे पहले गणेश जी की पूजा करें। इसके बाद अहोई माता की पूजा करें। पूजा में माता को दूध और भोग अर्पित करें। अहोई अष्टमी की कथा सुनें और अंत में संतान की लंबी उम्र के लिए प्रार्थना करें।
5. तारों का दर्शन: शाम को तारों को जल अर्पण करके पूजा पूर्ण की जाती है। व्रत तोड़ने के लिए चंद्रमा के दर्शन जरूरी नहीं होते, बल्कि तारों के दर्शन के बाद व्रत पूर्ण माना जाता है।
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