नई दिल्ली: छठ पूजा, जिसे महापर्व भी कहा जाता है, उत्तर भारत के खासकर बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। यह पर्व सूर्य देवता और छठी मइया को समर्पित है और मुख्य रूप से संतान की लंबी उम्र, परिवार की सुख-समृद्धि और स्वास्थ्य के लिए मनाया जाता है। इस पर्व में महिलाएं निर्जल और निराहार व्रत रखती हैं और सूर्य की पूजा करती हैं। इस वर्ष छठ पूजा का शुभ मुहूर्त कब है, चलिए जानते हैं।
इस वर्ष छठ पूजा 7 नवंबर 2024 को मनाई जाएगी। आमतौर पर यह पर्व दिवाली के छठे दिन आता है और चार दिनों तक चलता है।
1. नहाय खाय: छठ पूजा का पहला दिन नहाय खाय कहलाता है। इस दिन व्रत करने वाले व्यक्ति गंगा या किसी पवित्र नदी में स्नान करते हैं और पूरी शुद्धता के साथ भोजन ग्रहण करते हैं। नहाय खाय 5 नवंबर 2024 को है।
2. खरना: दूसरे दिन खरना मनाया जाता है। इस दिन व्रत करने वाले व्यक्ति शाम को गुड़ से बने खीर का सेवन करते हैं। इसके बाद उनका 36 घंटे का कठिन निर्जल व्रत शुरू होता है। खरना का आयोजन 6 नवंबर 2024 को होगा।
3. संध्या अर्घ्य: तीसरे दिन शाम के समय डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इसे संध्या अर्घ्य कहते हैं। इस वर्ष संध्या अर्घ्य 7 नवंबर 2024 को होगा।
4. प्रातः अर्घ्य: चौथे दिन, सूर्योदय के समय प्रातः अर्घ्य दिया जाता है और इसके साथ ही व्रत का समापन होता है। इस दिन व्रत करने वाले सूर्य देवता को अर्घ्य देने के बाद अन्न-जल ग्रहण करते हैं। प्रातः अर्घ्य 8 नवंबर 2024 को होगा।
नहाय-खाय – 5 नवंबर (सूर्योदय – सुबह 6 बजकर 39 मिनट पर होगा और सूर्यास्त शाम 5 बजकर 41 मिनट पर होगा)
खरना – 6 नवंबर, बुधवार को (इस दिन खीर खाई जाती है)
शाम का अर्घ्य – 7 नवंबर को
सुबह का अर्घ्य – 8 नवंबर को
छठ पूजा के दौरान व्रतधारी अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए सूर्य देवता और छठी मइया से आशीर्वाद मांगते हैं। कहा जाता है कि छठ पर्व पर जो भी श्रद्धालु सच्चे मन से उपासना करता है, उसकी सभी इच्छाएं पूरी होती हैं। यह पर्व प्राकृतिक और सामाजिक संतुलन को बनाए रखने का संदेश भी देता है। साथ ही यह पर्व जल, सूर्य और पर्यावरण की अहमियत को समझाता है, जिससे मानव जीवन का अटूट संबंध है।
छठ पूजा की विधि विशेष होती है। इस पर्व में केले के पत्ते पर पकवान बनाए जाते हैं। पूजा में ठेकुआ, चावल के लड्डू, फलों में नारियल, केला, सेब आदि का उपयोग किया जाता है। अर्घ्य देते समय बांस की टोकरी और डाला का विशेष महत्व होता है। छठ पूजा के दौरान लोग नदी, तालाब या अन्य जल स्रोत पर इकट्ठा होकर सामूहिक रूप से सूर्य को अर्घ्य देते हैं। यह पर्व सामाजिक एकता और प्रेम का प्रतीक भी है।
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