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आज छठ के तीसरे दिन इस समय दिया जाएगा अर्घ्य, जानें अस्ताचलगामी सूर्य की क्यों होती है पूजा?

आज छठ के तीसरे दिन इस समय दिया जाएगा अर्घ्य, जानें अस्ताचलगामी सूर्य की क्यों होती है पूजा?

नई दिल्ली:  छठ महापर्व में नहाए-खाए और खरना के बाद आज संध्याकाल में डूबते सूरज को अर्घ्य दिया जाएगा। छठ पूजा का तीसरा दिन विशेष होता है, जिसे संध्या अर्घ्य के रूप में मनाया जाता है। इस दिन भक्त नदी, तालाब, या जलाशयों के किनारे एकत्रित होते हैं और डूबते सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं। छठ पर्व की यह खास परंपरा बहुत ही श्रद्धा और विश्वास के साथ निभाई जाती है। छठ पूजा का तीसरा दिन  पहले भगवान सूर्य और छठी मैया की विधिवत पूजा होती है फिर इसी दिन शाम के समय सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है।

क्या होती है अस्ताचलगामी सूर्य पूजा?

छठ महापर्व में ही सिर्फ अस्ताचलगामी यानी डूबते सूर्य की पूजा कि जाती है। ऐसी मान्यता है कि इस समय सूर्य देवता अपनी दूसरी पत्नी प्रत्यूषा के साथ रहते हैं। इसी कारण इस दिन  डूबते सूर्य को यानी देवी प्रत्यूषा को अर्घ्य दिया जाता है। सूर्य की शाम के समय आराधना से जीवन में संपन्नता आती है। सूर्य के अस्त होते अर्घ्य देने से हर तरह की परेशानी दूर होती है। ऐसा माना जाता है कि इस पूजा से संतान की प्राप्ति होती है, इसके अलावा संतानवान लोगों की संतान और परिजनों का कल्याण होता है। सूर्य की अंतिम किरण यानी अस्ताचलगामी को अर्घ्य देने से विशेष लाभ होता है।  इससे नेत्र ज्योति बढ़ती है, आर्थिक संपन्नता आती है और लंबी आयु मिलती है। ऐसी भी मान्यता है कि इस समय विद्यार्थियों को भी अर्घ्य देना चाहिए, इससे उन्हें उच्च शिक्षा में लाभ मिलता है।

कैसे करते हैं अस्ताचलगामी सूर्य पूजा

छठ महापर्व में छठ व्रती खरना के बाद से ही प्रसाद की तैयारी में जुट जाते हैं। अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने से पहले व्रती भुसवा, ठेकुआ सहित अन्य प्रसाद सामग्रियों को बनाकर दौरा सजाते हैं। इसके बाद लोग  छठ घाटों पर प्रसाद सामग्री लेकर पहुंचते हैं फिर डूबते सूर्य को अर्घ्य देकर उनकी उपासना की जाती है। सूर्य उपासना के इस महापर्व के दिन मंत्रों की कोई जरूरत नहीं पड़ती, फिर भी यदि कोई भक्त  इन मंत्रों का उच्चारण करता है उसे मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। इसके लिए पश्चिम दिशा में सूर्य की ओर हाथ जोड़कर खड़े हो जाएं और फिर मंत्रों का उच्चारण करें।

तीसरे दिन कैसे होती है पूजा?

छठ पर्व के तीसरे दिन की पूजा को संध्या अर्घ्य भी कहा जाता है। संध्या अर्घ्य पूजा चैत्र या कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि पर होती है। इस दिन अर्घ्य की तैयारियां सुबह से शुरू हो जाती हैं।  पूजा के लिए लोग प्रसाद जैसे चावल के लड्डू, ठेकुआ आदि बनाते हैं। बांस की बनी एक टोकरी छठ पूजा के लिए ली जाती है, जिसमें पूजा के प्रसाद, फल, फूल, आदि को अच्छे से सजाया जाता है। इसके साथ ही एक सूप में नारियल, पांच प्रकार के फल रखे जाते हैं। लोग अपने पूरे परिवार के साथ सूर्यास्त से थोड़ी देर पहले नदी के किनारे छठ घाट जाते हैं।  महिलाएं छठ घाट की तरफ जाते हुए रास्ते में छठ गीत भी गाती हैं। सभी व्रती महिलाएं इसके बाद सूर्य देव की ओर मुख करके डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर पांच बार परिक्रमा करती हैं।  सूर्य देव को अर्घ्य देते समय दूध और जल चढ़ाया जाता है। इसके बाद  लोग सारा सामान लेकर घर आ जाते है और घाट से लौटने के बाद रात्रि में छठ माता के गीत गाते हैं

सूर्य अर्घ्य देने का समय

आज शाम को यानी छठ पूजा के तीसरे दिन डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा। हिंदू पंचांग के अनुसार आज 7 नवंबर को सूर्योदय प्रातः 06:42 बजे होगा। वहीं सूर्योदय प्रातः 06:42 बजे होगा सूर्यास्त होगा। इस दिन नदी या तालाब में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा।

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