इंतजार की घड़ी हुई समाप्त, प्रकट भये नंदलाला, भक्तों में उमड़ी खुशी की लहर

नई दिल्ली: भारत के कोने-कोने में जन्माष्टमी 2024 का उत्सव बड़े ही धूमधाम से मनाया जा रहा है। भगवान श्रीकृष्ण के जन्मदिवस के इस पावन अवसर पर भक्तों में गहरी श्रद्धा और उमंग देखने को मिल रही है। श्रीकृष्ण, जिन्हें नंदलाल और मुरलीधर के नाम से भी जाना जाता है, का जन्मोत्सव विशेष रूप से […]

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इंतजार की घड़ी हुई समाप्त, प्रकट भये नंदलाला, भक्तों में उमड़ी खुशी की लहर

Shweta Rajput

  • August 27, 2024 2:04 am Asia/KolkataIST, Updated 3 months ago

नई दिल्ली: भारत के कोने-कोने में जन्माष्टमी 2024 का उत्सव बड़े ही धूमधाम से मनाया जा रहा है। भगवान श्रीकृष्ण के जन्मदिवस के इस पावन अवसर पर भक्तों में गहरी श्रद्धा और उमंग देखने को मिल रही है। श्रीकृष्ण, जिन्हें नंदलाल और मुरलीधर के नाम से भी जाना जाता है, का जन्मोत्सव विशेष रूप से मध्यरात्रि को मनाया जाता है। जब भगवान श्रीकृष्ण ने धरती पर अवतार लिया, तब से ही यह पर्व हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण और धार्मिक भावना से भरपूर रहा है।

 

भक्तों में उमड़ा उल्लास

 

जन्माष्टमी का त्योहार विशेषकर उत्तर प्रदेश के मथुरा और वृंदावन में बेहद हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है, क्योंकि ये स्थान श्रीकृष्ण की लीलाओं से जुड़े हुए हैं। देशभर के मंदिरों को रंग-बिरंगी रोशनी और फूलों से सजाया गया है। श्रीकृष्ण के जन्म के समय रात के 12 बजते ही मंदिरों में घंटियों की गूंज सुनाई देने लगी और चारों ओर “नंद के आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की” के जयकारे गूंजने लगे।

 

विशेष पूजा और अनुष्ठान

 

इस दिन भक्तगण उपवास रखते हैं और भगवान श्रीकृष्ण की विशेष पूजा-अर्चना करते हैं। जन्माष्टमी की रात्रि को व्रत रखने का भी विशेष महत्व है। आधी रात को भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के समय भक्तगण माखन-मिश्री का भोग लगाते हैं। इसके साथ ही भगवान के प्रिय बांसुरी, मोर पंख और माखन के प्रतीक रूप में भी विशेष पूजा की जाती है।

 

दही-हांडी की धूम

 

जन्माष्टमी का मुख्य आकर्षण दही-हांडी का खेल होता है, जो खासकर महाराष्ट्र और गुजरात में धूमधाम से मनाया जाता है। यह खेल भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं को दर्शाता है, जब वे अपने मित्रों के साथ माखन चुराने के लिए मटकी तोड़ा करते थे। विभिन्न स्थानों पर ऊंची-ऊंची मटकियां बांधी जाती हैं, और युवा गोविंदा टीमें इन्हें फोड़ने का प्रयास करती हैं। यह एक मनोरंजक और रोमांचक आयोजन होता है, जिसमें सभी लोग बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं।

 

विशेष भजन और कीर्तन

 

जन्माष्टमी के इस पावन पर्व पर मंदिरों में विशेष भजन और कीर्तन का आयोजन भी होता है। भक्तजन पूरी रात जागकर भगवान श्रीकृष्ण की महिमा का गुणगान करते हैं। “अच्युतम केशवम कृष्ण दामोदरम”, “हरे रामा हरे कृष्णा” जैसे भजन गाए जाते हैं, जिससे वातावरण पूरी तरह से भक्तिमय हो जाता है।

 

जन्माष्टमी का महत्व

 

जन्माष्टमी का पर्व भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। यह वही तिथि है जब मथुरा में कंस के कारागार में भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। पुराणों के अनुसार, भगवान कृष्ण ने अत्याचारी कंस के अत्याचारों से मानवता की रक्षा के लिए इस धरती पर अवतार लिया था। श्रीकृष्ण का जन्म मध्यरात्रि के समय हुआ था, इस कारण जन्माष्टमी का मुख्य आयोजन भी रात के समय होता है। जन्माष्टमी का पर्व हमें श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं के साथ-साथ उनके द्वारा दिए गए गीता के उपदेशों की याद दिलाता है। भगवान श्रीकृष्ण ने गीता के माध्यम से संसार को धर्म, कर्म और प्रेम का संदेश दिया। इस दिन का महत्व इसलिए भी अधिक है क्योंकि यह हमें अपने जीवन में धर्म और सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।

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