नई दिल्ली, सिख समुदाय के लिए नया साल माना जाने वाला त्यौहार बैसाखी बड़े ही धूमधाम के साथ मनाई जाती है. हर साल इसे 13-14 अप्रैल को मनाया जाता है. जहाँ परिवार और दोस्तों के साथ मिलकर इस त्यौहार की मैंने और भी बढ़ जाते हैं. लेकिन आखिर इस त्यौहार के पीछे का इतिहास है क्या?
इस साल बैसाखी 14 अप्रैल यानि कल मनाई जानी है. लेकिन आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि आखिर बैसाखी का त्यौहार मनाया क्यों जाता है. बैसाखी का त्यौहार बसंत ऋतु के आने का प्रतीक माना जाता है. इसे पंजाब और हरियाणा में बड़े ही हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता आया है. मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि बैसाखी हिन्दू कैलेंडर का पहला दिन है इसलिए इसे नए वर्ष के रूप में भी मनाया जाता है. हालांकि ये पूरी तरह से स्वीकृत तिथि नहीं कही जाती है.
30 मार्च, 1699 को सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना की थी. उन्होंने सिख समुदाय के सभी सदस्यों से भगवानों और गुरुओं के लिए बलिदान करने के लिए आगे आने के लिए कहा था. ऐसे लोग जो बलिदान के लिए आगे आते थे उन्हें पंज प्यारे कहा जाता था. इसका मतलब होता है गुरु के पांच प्रियजन. बाद में जाकर इसी दिन यानि बैसाखी के दिन महाराजा रणजीत सिंह को सिख साम्राज्य का प्रभार सौप दिया गया. जिन्होंने आगे जाकर एकीकृत राज्य की स्थापना की. इसलिए इस दिन को बैसाखी के रूप में मनाया जाता है.
बसंत ऋतु को चिन्हित करने के लिए भी बैसाखी का त्यौहार मनाया जाता आया है. इस दिन किसान ईश्वर को उनकी पूरे साल के लिए फसल रक्षा और अच्छी फसल का धन्यवाद भी करते हैं. बैसाखी को नए साल की तरह देखते हुए कई हिन्दू और सिख समुदायों में झीलों में डुबकी भी लगाई जाती है. नए साल की सकारात्मक रूप से शुरुआत करने के लिए नकारात्मकता को पीछे भी छोड़ दिया जाता है. साथ ही इस दिन अन्न के महत्त्व को दिखाते हुए फसलों की पूजा भी की जाती है. इस दिन को मनाने के लिए नगर कीर्तन, गुरुद्वारा जाना, भव्य भोजन तैयार करना और परिवार और दोस्तों के साथ दावत देना आदि भी किये जाते हैं. कई लोग दान भी देते हैं. बड़े स्तर पर खाने का सामान यानि लंगर भी किया जाता है.
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