नई दिल्ली: जन्माष्टमी, जो भगवान श्रीकृष्ण के जन्मदिन के रूप में मनाई जाती है, यह भारत में एक महत्वपूर्ण धार्मिक पर्व माना जाता है। इस दिन भक्तगण भगवान कृष्ण को प्रसन्न करने के लिए कई विधियों का पालन करते हैं। पूजा में कृष्ण जी को पीले रंग के वस्त्र पहनाने की परंपरा भी विशेष महत्व […]
नई दिल्ली: जन्माष्टमी, जो भगवान श्रीकृष्ण के जन्मदिन के रूप में मनाई जाती है, यह भारत में एक महत्वपूर्ण धार्मिक पर्व माना जाता है। इस दिन भक्तगण भगवान कृष्ण को प्रसन्न करने के लिए कई विधियों का पालन करते हैं। पूजा में कृष्ण जी को पीले रंग के वस्त्र पहनाने की परंपरा भी विशेष महत्व रखती है। इस लेख में हम जानेंगे कि क्यों जन्माष्टमी पर पीले रंग के वस्त्रों का उपयोग किया जाता है और इसका क्या धार्मिक महत्व है।?
हिंदू धर्म में रंगों का विशेष महत्व है। पीला रंग ज्ञान, बुद्धि और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। यह रंग भगवान विष्णु से भी जुड़ा हुआ है, जो सृष्टि के पालनकर्ता माने जाते हैं। भगवान श्रीकृष्ण, जो भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं, को पीले वस्त्र पहनाना उनके ज्ञान और दिव्यता का सम्मान करना है।
पीले रंग के वस्त्रों का धार्मिक महत्व वेदों और पुराणों में उल्लेखित है। यह रंग सूर्य देवता से भी संबंधित है, जो जीवन का स्रोत हैं। पीला रंग मनुष्य के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है और उसे शांत और स्थिर बनाता है। यह भी माना जाता है कि भगवान कृष्ण पीले रंग के वस्त्रों से अधिक आकर्षित होते हैं क्योंकि यह रंग उन्हें प्रसन्नता और संतोष देता है।
कहा जाता है कि जब भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था, तब उनके शरीर पर पीले वस्त्र ही थे। यह वस्त्र उन्हें उनकी दिव्यता और उनके अद्वितीय ज्ञान का प्रतीक बनाने के लिए धारण कराए गए थे। इसके अलावा कई धार्मिक कथाओं में उल्लेख मिलता है कि भगवान कृष्ण ने गोकुल में बचपन के समय से ही पीले रंग के वस्त्र धारण किए थे।
जन्माष्टमी के दिन भक्त अपने घरों और मंदिरों में भगवान कृष्ण की मूर्तियों को पीले वस्त्र पहनाते हैं। इसके बाद उन्हें दूध, दही, मक्खन और विभिन्न मिठाइयों का भोग अर्पित किया जाता है। भक्तगण इस दिन उपवास रखते हैं और रात्रि में भगवान के जन्मोत्सव का आयोजन करते हैं। यह अनुष्ठान भक्तों के जीवन में समृद्धि और शांति लाने में सहायक माने जाते हैं। सभी भक्त जन्माष्टमी पर भगवान कृष्ण के प्रति अपनी भक्ति और श्रद्धा व्यक्त करते हैं। इसके बाद उन्हें दूध, दही, मक्खन और विभिन्न मिठाइयों का भोग अर्पित किया जाता है। भक्तगण इस दिन उपवास रखते हैं और रात्रि में भगवान के जन्मोत्सव का आयोजन करते हैं। यह अनुष्ठान भक्तों के जीवन में समृद्धि और शांति लाने में सहायक माने जाते हैं।
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