नई दिल्ली: नवरात्रि के सांतवे दिन कालरात्रि की पूजा की जाती है। अक्टूबर को शारदीय नवरात्रि की सप्तमी तिथि है। मान्यता है कि मां कालरात्रि अपने भक्तों की सभी मनोकामनाओं को पूरा करती हैं। सदैव शुभ फल देने के कारण इनको शुभंकरी नाम से भी जाना जाता है। मां कालरात्रि बुराई का विनाश करने के […]
नई दिल्ली: नवरात्रि के सांतवे दिन कालरात्रि की पूजा की जाती है। अक्टूबर को शारदीय नवरात्रि की सप्तमी तिथि है। मान्यता है कि मां कालरात्रि अपने भक्तों की सभी मनोकामनाओं को पूरा करती हैं। सदैव शुभ फल देने के कारण इनको शुभंकरी नाम से भी जाना जाता है। मां कालरात्रि बुराई का विनाश करने के लिए जानी जाती हैं, इसलिए इनका नाम कालरात्रि पड़ा। आपको बता दें, मां कालरात्रि तीन नेत्रों वाली देवी हैं। कहा जाता है जो भी भक्त नवरात्रि के सांतवें दिन मां कालरात्रि की पूजा करते है, उनकी सारी परेशानी दूर हो जाती है। मां कालरात्रि की पूजा से भय और रोगों का निवारण होता है। साथ ही भूत प्रेत, अकाल मृत्यु ,रोग, शोक आदि सभी प्रकार की परेशानियों से भी राहत मिलती है। आइए जानते हैं मां कालरात्रि की पूजा की तिथि और शुभ मुहूर्त।
कह जाता है कि मां दुर्गा को कालरात्रि का रूप शुम्भ, निशुम्भ और रक्तबीज का विनाश करने के लिए लेना पड़ा था। माँ देवी कालरात्रि का शरीर अंधकार की तरह काला है। मां के बाल बड़े और बिखरे हुए हैं। माँ गले में माला पहनती है जो बिजली की तरह चमकती रहती है। मां के तीन नेत्र है, जो ब्रह्मांड की तरह गोल हैं। मां के चार हाथ हैं, जिनमें एक हाथ में खडग अर्थात तलवार है। दूसरे हाथ में लौह अस्त्र, तीसरे हाथ अभय मुद्रा में है और चौथे हाथ में वरमुद्रा में है।
नवरात्रि के सांतवे दिन सबसे पहले स्नान करें और साफ कपड़े पहन लें, इसके बाद घर के मंदिर या पूजा स्थान में चौकी पर कालरात्रि की तस्वीर या प्रतिमा स्थापित करें, फिर गंगाजल से शुद्धिकरण करें फिर एक कलश में पानी लेकर उसमें कुछ सिक्के डालें और उसे माता की चौकी पर रख दें। स्नान के बाद माता के सामने घी का दीपक जलाना है। माता को लाल रंग के पुष्प अर्पित करें। देवी की पूजा में अक्षत, धूप, गंध, पुष्प और गुड़ नैवेद्य, मिष्ठान, पंच मेवा, पांच प्रकार के फल, आदि का अर्पण किया जाता है। इस दिन गुड का प्रसाद माँ को भोग लगाना चाहिए। साथ ही माँ की आरती कर उनकी पूजा करनी चाहिए।
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