नई दिल्ली : हिंदू सनातन धर्म में मकर संक्रांति का बहुत महत्त्व माना गया है. देश के अलग-अलग राज्यों और अलग-अलग संस्कृतियों में इस दिन को अन्य नामों से जाना जाता है. इन नामों में उत्तरायण, पोंगल, खिचड़ी, आदि शामिल हैं. इस साल की बात करें तो साल 2023 में मकर संक्रांति की तारीख को […]
नई दिल्ली : हिंदू सनातन धर्म में मकर संक्रांति का बहुत महत्त्व माना गया है. देश के अलग-अलग राज्यों और अलग-अलग संस्कृतियों में इस दिन को अन्य नामों से जाना जाता है. इन नामों में उत्तरायण, पोंगल, खिचड़ी, आदि शामिल हैं. इस साल की बात करें तो साल 2023 में मकर संक्रांति की तारीख को लेकर बहुत से लोग कन्फ्यूज हैं. कोई मकर संक्रांति की तारिख 14 जनवरी को बता रहा है तो कोई 15 जनवरी को. आइए जानते हैं कि इस साल मकर संक्रांति का पर्व किस दिन मनाया जाएगा. इसके अलावा मकर संक्रांति पर शनि और राहु के दुष्प्रभाव से बचने के उपाय भी जानेंगे.
ज्योतिषविदों की मानें तो इस साल मकर संक्रांति का पर्व 15 जनवरी 2023 को मनाया जाना है. पंचांग की मानें तो ग्रहों के राजा सूर्य ग्रह 14 जनवरी के दिन शनिवार को धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश कर रहे हैं. इसलिए रविवार, 15 जनवरी की सुबह ही उदिया तिथि में मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाना है. यह पर्व 15 जनवरी को पूरे दिन मान्य होगा. इस दिन दोपहर तक के समय स्नान, दान के लिए विशेष पुण्य फलदायक रहेंगे.
बता दें, मकर संक्रांति के दिन नदी के तट पर स्नान के बाद सूर्य देव की पूजा करने का विधान है. मान्यता है कि इससे इंसान की हर मनोकामना पूर्ण हो जाती है. इस दिन सूर्य देवता दक्षिणायन से उत्तरायण होते हैं. इसी से देवताओं के दिन शुरू हो जाते हैं. बता दें, मकर संक्रांति की शुरुआत से खरमास समाप्त हो जाता है. खरमास ख़त्म होने के बाद शादी-विवाह जैसे शुभ व मांगलिक कार्यों पर लगी रोक भी हट जाती है.
ज्योतिष शास्त्र की मानें उड़द की दाल का संबंध शनि देव से है. मकर संक्रांति के दिन शनि दोष से निवृत्ति के लिए उड़द दाल की खिचड़ी अवश्य दान करनी चाहिए.इससे निश्चित ही शनि दोष दूर होता है. मकर संक्रांति के दिन तिल का भी दान करना अच्छा माना जाता है. ऐसी मान्यता है कि तिल के दान से जीवन में शनि दोष दूर होता है.आप कंबल का दान भी कर सकते हैं जो बहुत फलदायी माना गया है. इससे राहु दोष से मुक्ति मिलेगी. मान्यता है कि सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करते ही ऋतु परिवर्तन होने लगता है और इसके बाद से ही वसंत ऋतु की शुरुआत हो जाती है.
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