नई दिल्ली: भाई दूज का पर्व भाई-बहन के प्रेम और स्नेह का प्रतीक है, और इसके पीछे एक प्राचीन पौराणिक कथा जुड़ी हुई है। भाई दूज के पर्व की असली कहानी यमराज और उनकी बहन यमुनाजी से जुड़ी है।
कहते हैं कि यमराज, जो मृत्यु के देवता हैं, अपनी बहन यमुनाजी से बहुत प्रेम करते थे। यमुनाजी चाहती थीं कि उनका भाई उन्हें मिलने आए, लेकिन यमराज अपने कर्तव्यों के कारण कभी अपनी बहन के पास नहीं जा पाते थे। एक दिन, यमुनाजी ने मन ही मन यह संकल्प लिया कि यदि उनके भाई उनसे मिलने आएंगे, तो वह उनका विशेष आदर-सत्कार करेंगी।
यमुनाजी की इस इच्छा को जानकर, एक दिन यमराज ने उनसे मिलने का निश्चय किया। यमुनाजी ने अपने भाई का स्वागत किया, उन्हें तिलक किया, उनके आरती उतारी और उन्हें मिठाई खिलाई। अपने बहन के प्रेम से अभिभूत होकर यमराज ने यमुनाजी से वरदान माँगने को कहा। यमुनाजी ने उनसे यह वरदान माँगा कि हर वर्ष जो बहन इस दिन अपने भाई का तिलक करके उसकी लंबी आयु की कामना करेगी, उसके भाई को लंबी आयु प्राप्त हो और उसे किसी भी तरह की परेशानी का सामना न करना पड़े। यमराज ने अपनी बहन की यह इच्छा स्वीकार की और उन्हें आशीर्वाद दिया।
इस प्रकार, भाई दूज के दिन से यह मान्यता बन गई कि इस दिन बहनें अपने भाई को तिलक करती हैं और उसकी लंबी उम्र और सुख-समृद्धि की कामना करती हैं। बदले में भाई अपनी बहन की रक्षा का वचन देते हैं और उन्हें उपहार भी देते हैं।
दूसरी कथा के अनुसार, जब भगवान श्रीकृष्ण ने राक्षस नरकासुर का वध किया और अपने घर लौटे, तो उनकी बहन सुभद्रा ने उनका स्वागत किया, उनके माथे पर तिलक लगाया, मिठाई खिलाई और आरती उतारी। तब श्रीकृष्ण ने बहन के इस स्नेह के बदले में उसे वरदान दिया कि इस दिन जो भी भाई अपनी बहन का आदर-सत्कार करेगा और उसकी रक्षा का वचन देगा, उसे जीवन में कभी संकट का सामना नहीं करना पड़ेगा।
भाई दूज भाई-बहन के पवित्र रिश्ते का प्रतीक है, जहां बहन अपने भाई की लंबी उम्र और सुखद जीवन की कामना करती है, और भाई अपनी बहन की रक्षा का वचन देता है। इस दिन बहनें अपने भाई को तिलक करती हैं और विशेष भोजन बनाकर उन्हें खिलाती हैं। बदले में भाई बहनों को उपहार देते हैं और उनकी रक्षा का संकल्प लेते हैं। भाई दूज का पर्व हमें यह सिखाता है कि पारिवारिक रिश्ते कितने महत्वपूर्ण होते हैं और भाई-बहन के बीच का प्रेम और सम्मान जीवनभर बना रहना चाहिए।
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