नई दिल्ली। आज पूरा देश होली के त्यौहार को मनाने जा रहा है। आज के दिन लोग एक दूसरे को रंग लगाने के अलावा पकवानों और नाच-गानों के जरिए त्यौहार को मनाएंगे। इसके अलावा होली को बुराई पर अच्छाई की जीत के तौर पर भी मनाया जाता है। लेकिन आप जानते है कि हम होली का त्यौहार क्यों मनाते है और सबसे पहले होली कहां मनाई गई थी। यदि नहीं तो आज हम आपको बताते है, क्या है होली का इतिहास और इसकी शुरुआत कहां से हुई थी।
होली मनाने की शुरुआत झांसी जिला मुख्यालय से लगभग अस्सी किलोमीटर दूर बुंदेलखंड में झांसी के एरच से हुई थी। जानकारी के मुताबिक यह कभी हिरण्यकश्यप की राजधानी हुआ करती थी। इस जगह पर होलिका नाम की महिला विष्णु भगवान के भक्त प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर आग में बैठ गई थी। इस पूरी कहानी में होलिका आग में जल गई थी, जबकि प्रह्लाद बच गया था।
धार्मिक कथाओं के अनुसार, होली पर्व मनाने की कथा दुष्ट राजा हिरण्यकश्यप से जुड़ी है। जो विष्णु भक्त प्रह्लाद के पिता थे। वह खुद को बहुत शक्तिशाली मानता था और कठोर तपस्या के बाद उसे शक्तिशाली होने का वरदान भी हासिल हुआ था। लेकिन उसने अपनी शक्तियों का गलत प्रयोग किया, इतना ही नहीं वह लोगों को स्वयं को भगवान की तरह पूजने को कहता था। लेकिन उसके पुत्र प्रह्लाद का स्वभाव पिता से बिल्कुल अलग था।
प्रह्लाद के स्वभाव से पिता हिरण्यकश्य क्रोधित होते थे। उन्होंने कई बार प्रह्लाद को भगवान विष्णु की भक्ति करने से भी मना किया और खुद की पूजा करने को कहा, लेकिन प्रह्लाद ने पिता की एक ना सुनी। आखिरकार हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को जान से मारने का निर्णय कर लिया। उसने अपनी बहन होलिका को प्रह्लाद को गोद में लेकर आग पर बैठने को कहा क्योंकि होलिका अग्नि से जल नहीं सकती थी। लेकिन भगवान की महिमा ऐसी हुई कि, होलिका अग्नि में जलकर भस्म हो गई और प्रह्लाद को कुछ नहीं हुआ। क्योंकि प्रह्लाद होलिका की गोद में बैठकर भी भगवान का नाम जपता रहा। इसके बाद भगवान विष्णु ने हिरण्यकश्यप का वध कर दिया। इसलिए होली के त्यौहार को बुराई पर अच्छाई की जीत के तौर पर भी मनाया जाता है। होली से एक दिन पहले होलिका दहन भी किया जाता है।
होली का त्यौहार काफी ज्यादा प्राचीन है। इसका इतिहास इतना पुराना है कि इसे ईसा मसीह के जन्म से कई सदियों पहले से ही इसे मनाया जाता रहा है। सबसे पहले होली मनाने का उल्लेख जैमिनी के पूर्व मीमांसा सूत्र और काठक गृह्यसूत्र में भी मिलता है। इसके अलावा भारत के प्राचीन मंदिरों की दीवारो पर भी होली से संबंधित बनी मूर्तियां मिलती है। 16वीं सदी का एक मंदिर जो विजयनगर की राजधानी हंपी में स्थित है, यहां पर होली के कई दृश्य देखने को मिलते है, जिसमें राजकुमार और राजकुमारी अपने दासों समेत एक दूसरे पर रंग लगाते हुए नजर आ रहे हैं।
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