नई दिल्ली: बकरीद त्योहार का मुस्लिम धर्म में बहुत महत्व है। मुस्लिमों के इस त्योहार को ईद-उल-अजहा या कुर्बानी का त्योहार भी कहा जाता है। बताया जाता है कि रमजान के पाक महीने के ठीक 70 दिन बाद बकरीद मनाई जाती है। वैसे तो बकरीद के त्योहार की तारीख चांद दिखने से तय होती है और इस साल बकरीद पूरे भारत में 10 जुलाई को मनाई जाएगी। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस त्योहार को क्यों मनाया जाता हैं और इसके पीछे का इतिहास क्या है? आज हम आपको कुर्बानी देने के इस त्योहार से जुड़ी कुछ खास बातें बताएंगे। तो आइए जानते हैं क्या है बकरीद और कैसे मनाते हैं इस खास दिन को-
बकरीद के दिन मुस्लिम धर्म के लोग ईदगाहों और मस्जिदों में जमात के साथ नमाज अदा करते हैं। इस त्योहार की शुरुआत सुबह नमाज अदा करने के साथ होती है। साथ ही लोग अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के घर भी जाते हैं और एक दूसरे को ईद की मुबारकबाद देते हैं। इसके अलावा बकरीद पर घर में लजीज व्यंजन भी बनाए जाते हैं।
कहा जाता है कि पैगंबर हजरत इब्राहिम ने सबसे पहले कुर्बानी देना शुरू किया था। माना जाता है कि एक बार अल्लाह ने उनसे अपनी सबसे प्यारी चीज को कुर्बान करने के लिये कहा था। तब पैगंबर हजरत इब्राहिम ने अल्लाह के आगे अपने प्यारे बेटे की कुर्बानी देने का फैसला किया था क्योंकि उनका बेटा उन्हें सबसे अजीज था।
बताया जाता है कि पैगंबर के इस फैसले से अल्लाह बेहद खुश हुए। इसके बाद जैसे ही पैगंबर हजरत इब्राहिम अपने 10 साल के बेटे की कुर्बानी देने जा रहे थे, अल्लाह ने उसके बेटे की जगह एक बकरे से बदल दी। माना जाता है कि तभी से बकरीद के दिन बकरे की कुर्बानी देने की परंपरा शुरू हुई।
इसके अलावा इस दिन बकरे के अलावा ऊंट और भेड़ की भी कुर्बानी दी जा सकती है। कुर्बानी देने के बाद मांस को तीन भागों में बांट दिया जाता है। इसमें से पहला हिस्सा रिश्तेदारों, दोस्तों व पड़ोसियों को दिया जाता है, जबकि दूसरा हिस्सा गरीबों व जरूरतमंदों में बांटा जाता है। फिर तीसरा और आखिरी हिस्सा परिवार के लिए रखा जाता है।
इस दिन कुर्बानी देने के लिए भी कुछ नियमों का भी पालन करना पड़ता है. इस दिन केवल स्वस्थ पशुओं की कुर्बानी दी जाती है। वध के समय पशु जीवित होना चाहिए। कत्लेआम एक जवान मुस्लिम द्वारा जाना चाहिए। मान्यता है कि एक गैर मुस्लिम द्वारा वध किए गए पशु हलाल नहीं होंगे। साथ ही कुर्बानी करते समय यह कहना चाहिए: बिस्मिल्लाह अल्लाहु अकबर।
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