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13 या 14 सि‍तंबर, आखिर किस दिन मनाई जाएगी जलझूलनी एकादशी? रूठी किस्मत को बदल देगा ये महाव्रत

नई दिल्ली: जलझूलनी एकादशी, जिसे परिवर्तिनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म में अत्यधिक महत्वपूर्ण व्रतों में से एक है। हर साल भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को यह व्रत रखा जाता है। इस वर्ष जलझूलनी एकादशी का व्रत 13 या 14 सितंबर 2024 को मनाया जाएगा। ज्योतिषीय दृष्टिकोण से, यह एकादशी व्यक्ति की रुकी हुई किस्मत को जागृत करने और जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने वाली मानी जाती है।

13 या 14 सितंबर: व्रत का सही दिन

व्रत के दिन को लेकर अक्सर लोगों में भ्रम होता है। पंचांग के अनुसार 13 सितंबर 2024 की रात 09:59 बजे से एकादशी तिथि प्रारंभ होगी और 14 सितंबर 2024 को रात 09:32 बजे समाप्त होगी। ऐसे में, 14 सितंबर को जलझूलनी एकादशी का व्रत रखना उत्तम माना जा रहा है, क्योंकि उस दिन पूरा दिन एकादशी तिथि प्रभावी रहेगी। कुछ लोग उद्यापन करने के लिए एकादशी तिथि की शुरुआत का समय ध्यान में रखते हैं, इसलिए वे 13 सितंबर को भी व्रत रख सकते हैं। लेकिन अधिकतर विद्वानों का मानना है कि 14 सितंबर का दिन व्रत के लिए श्रेष्ठ है।

जलझूलनी एकादशी का महत्व

जलझूलनी एकादशी का नाम सुनते ही मन में भक्ति और श्रद्धा का भाव उत्पन्न होता है। इस व्रत का मुख्य उद्देश्य भगवान विष्णु की पूजा करना और उनसे कृपा प्राप्त करना है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु शयन अवस्था में करवट बदलते हैं, इसलिए इसे परिवर्तिनी एकादशी भी कहा जाता है। इस दिन व्रत रखने से व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक बदलाव आते हैं और भगवान विष्णु की कृपा से सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इस व्रत को करने से विशेष रूप से उन लोगों को लाभ होता है जिनकी किस्मत लंबे समय से साथ नहीं दे रही होती। माना जाता है कि जलझूलनी एकादशी के दिन व्रत रखने से उनके जीवन में समृद्धि, सुख-शांति और सफलता आती है।

व्रत विधि

1. स्नान और संकल्प: एकादशी के दिन प्रातःकाल स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण करें। उसके बाद भगवान विष्णु के समक्ष व्रत का संकल्प लें।

2. पूजा: भगवान विष्णु की प्रतिमा को जल, गंगा जल, फूल, धूप, दीपक आदि से पूजें।

3. विष्णु सहस्रनाम का पाठ: भगवान विष्णु की स्तुति के लिए विष्णु सहस्रनाम का पाठ करना अत्यधिक शुभ माना जाता है।

4. दिनभर उपवास: इस दिन निर्जल या फलाहार व्रत रखें। यदि शारीरिक स्थिति न हो, तो फल या जल ग्रहण कर सकते हैं।

5. रात को जागरण: रात को भगवान विष्णु के भजन और कीर्तन में समय बिताएं।

6. द्वादशी पर पारण: एकादशी के अगले दिन द्वादशी पर ब्राह्मणों को भोजन करवाकर व्रत का पारण करें।

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Shweta Rajput

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