नई दिल्ली: श्राद्ध यूं तो पितरों को प्रसन्न करने के लिए किए जाते हैं लेकिन ऐसा भी माना जाता है कि श्राद्ध पितरों का ऋण चुकाने के लिए भी किए जाते हैं. हिन्दूधर्म के मुताबिक, किसी भी शुभ कार्य को शुरू करने से पहले अभिभावकों और पूर्वजों का आशीर्वाद लेना चाहिए. इसी वजह से ऋषियों ने साल में एक पक्ष को पितृ पक्ष का नाम दिया था.
पितृ पक्ष में लोग अपने पूर्वजों को प्रसन्न करने, उनके लिए स्वर्ग की कामना करने हेतू और उनकी मुक्ति के लिए विशेष क्रिया संपन्न कर श्राद्ध करते हुए अर्ध्य समर्पित करते हैं. भाद्रपद की पूर्णिमा से लेकर आश्विन कृष्ण अमावस्या तक का समय श्राद्ध पक्ष है. पितरों को तृप्त करने के लिए श्राद्ध किए जाते हैं. श्राद्ध पक्ष में हर पूर्वज को याद कर उनके नाम का श्राद्ध करते हैं ताकि वे खुश रहें और अपना आशीर्वाद परिवार पर बनाएं रखें.
शास्त्रों में भी देवकार्य करने से पहले पितरों को तृप्त करने की बात कही गई है. ऐसा भी माना जाता है कि जो लोग श्राद्ध नहीं करते उन्हें जीवन में कई कठिनाईयों और दुःखों से गुजरना पड़ता है. सामान्य तौर पर हर वर्ष जिस महीने और तारीख पर पितरों का स्वर्गवास हुआ होता है श्राद्ध तभी किया जाता है. लेकिन जो लोग उन तिथियों को याद नहीं रख पाते या फिर सालभर श्राद्ध करने की क्षमता नहीं रख पाते तो सोलह दिन के श्राद्ध पक्षों में पितृपक्ष की उसी तिथि को श्राद्ध किया जाता है. जैसे पूर्णिमा पर देहांत होने पर भाद्रपद की शुक्ल पूर्णिमा पर श्राद्ध किया जा सकता है और ऐसा शास्त्रों में स्पष्ट रूप से बताया गया है.
आमतौर पर दो तरह से श्राद्ध किए जाते हैं. पहला पिंडदान करके और दूसरा ब्राह्मणों को भोजन करवाकर. लेकिन आजकल लोग तीसरा ही विकल्प चुनते हैं और वो हैं मंदिर में पितरों के नाम की पूजा करवाना या चढ़ावा चढ़ाना. ऐसा माना जाता है कि ब्राह्मणों को भोजन करवाने से पितरों की आत्मा तृप्त होती है.
यदि सच्चे मन से खासतौर पर श्राद्ध के दिनों में पितरों को याद किया जाए तो वे खुश होकर जाते हैं और अपना आशीर्वाद देते हैं. ऐसा माना जाता है कि पितरों के नाम पर उनके सभी बेटों को श्राद्ध करना चाहिए फिर वे घर से अलग रह रहे हो या फिर साथ में.