नई दिल्ली: पूर्णिमा के बाद अमावस्या के 15 दिनों तक पितृ-आराधाना की जाती है. श्राद्ध पक्ष में ब्राह्रामण भोजन कराने का विधान है. श्राद्ध तर्पण से पितृ को प्रसन्नता एवं संतुष्टि मिलती है. पितृगण प्रसन्न होकर दीर्घ आयु, संतान सुख, धन-धान्य, विद्या, राजसुख, यश-कीर्ति, पुष्टि, शक्ति, स्वर्ग एवं मोक्ष तक प्रदान करते हैं.
कैसे करें पितरों का श्राद्ध ?
जिनके माता-पिता, दादा-दादी या फिर घर के और बड़े-बूढ़े लोग स्वर्गवासी हो गए हैं तो श्राद्ध के दिन सुबह जल्दी उठकर एक नदी में स्नान करके तिल, अक्षत और कुश लेकर पितृ वैदिक मंत्रों द्वारा सूर्य के सामने श्रद्धांजलि दें.
पितृपक्ष के दौरान जिस दिन पूर्वजों की मृत्यू की तिथि वाले दिन व्रत करें. श्राद्ध वाले दिन खीर और दूसरे पकवान बनाएं. दोपहर के समय पूजा शुरू कर देनी चाहिए. उसके बाद अग्निकुंड में अग्नि या उपला जलाकर हवन करें. इसके बाद योग्य पंडितों की सहायता से मंत्रोच्चारण करें. पूजा के बाद जल से तर्पण करें. पूजा के बाद गाय, काले कुत्ते और कौए को जरुर खिलाएं. इन्हें भोजन कराते समय अपने पितरों का ध्यान करें और मन ही मन उनसे निवेदन करें कि आप आएं और ये श्राद्ध ग्रहण करें.
गाय में सभी देवी-देवताओं का महत्व होता है इसलिए श्राद्ध में गाय का विशेष महत्व है. श्राद्ध में कुत्ते और कौए का भी विशेष महत्व होता है इसलिए इनका भी अपना एक अलग स्थान है. पशुओं को भोजन देने के बाद तिल, जौ, कुशा, तुलसी के पत्ते, मिठाई और दूसरे पकवान जरूरतमंद को परोसकर उन्हें भोजन करवाना चाहिए. भोजन के बाद दान जरूर करें. अगर आप ये विधि से श्राद्ध करने पर पर पितृ तो शांति मिलती है.
क्या कुंडली में पितृ दोष है ?
कुंडली में पितृ दोष है या बन रहा है तो घर की दक्षिण दिशा में स्वर्गीय रिश्तेदारों का फोटो लगाएं और उन पर हार चढ़ा दें. रोजना पूजा करें, कम से कम घर से निकलते वक्त हाथ जोड़कर निकलें. उनका आशीर्वाद लेने से पितृदोष से मुक्ति मिलेगी.
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