नई दिल्ली: गहने, श्रृंगार तथा महिलाएं, एक-दूसरे के पर्याय हैं. आश्रमों में रहने वाली वनकन्याओं से लेकर रानी-महारानियों तक गहने और श्रृंगार को लेकर एक अद्भुत आकर्षण देखा जाता रहा है.
वनकन्याएं जहां फूलों से बने आभूषण पहना करती थीं वहीं रानियां सोने-चांदी और हीरे-जवाहरातों से खुद को सजाया करती थीं. सारे जवाहरात तो नहीं लेकिन हम जिक्र करेंगे उस खूबसूरत गहने का जिसके दीवाने कवि और शायर भी रहे हैं.
कानों की सजावट के लिए बनाया गया यह गहना झुमका, टॉप्स, बाली और अन्य कई तरह के प्रकारों में महिलाओं के श्रृंगार में चार चांद लगाता है.
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