मुंबई: महान तबलावादक और संगीतकार उस्ताद जाकिर हुसैन का निधन हो गया। दिल से जुड़ी समस्याओं के कारण उन्हें अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को स्थित अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां उन्होंने अंतिम सांस ली। जाकिर हुसैन सिर्फ एक बेहतरीन तबला वादक ही नहीं, बल्कि एक प्रतिभाशाली संगीतकार भी थे, जिनकी कला ने दुनिया भर के संगीत प्रेमियों को दिल जीता। हालांकि, जाकिर हुसैन का सफर आसान नहीं था। उनकी मां चाहती थीं कि वह संगीत के बजाय किसी अन्य पेशे में जाएं। वहीं 6 साल की उम्र में संगीतकार को घर से भागने का भी सोचा था, ऐसा क्यों आइए जानते है.
बता दें शुरुआती दिनों में संगीतकारों को न तो उतना सम्मान मिलता था और न ही अच्छी कमाई। जाकिर ने खुद एक इंटरव्यू में बताया था कि कई बार उन्हें कॉन्सर्ट में बजाने के बदले पैसे की जगह खाने के पैकेट मिलते थे। इस वजह से उनकी मां हमेशा चाहती थीं कि वह एक बेहतर और स्थिर करियर अपनाएं।
जाकिर हुसैन ने बचपन में कई बार घर छोड़ने का मन बनाया। वह अपनी पुजारिन को भी साथ भागने के लिए कह देते थे, ताकि वह गाना गाएं और वह तबला बजाएं। लेकिन हर बार उनके पिता उस्ताद अल्लाह रक्खा का ख्याल उन्हें रोक देता। उनके पिता ने ही उनके कान में तबले की ताल गाकर उनका परिचय संगीत से कराया था।
जाकिर हुसैन ने हमेशा नंबर गेम से खुद को दूर रखा। वह मानते थे कि संगीत में प्रतिस्पर्धा की जगह नहीं होनी चाहिए। एक किस्सा सुनाते हुए उन्होंने बताया कि एक बार इमिग्रेशन ऑफिसर ने उनसे पूछा कि रविशंकर के बाद सबसे बड़े संगीतकार कौन हैं। इस पर उनकी पत्नी ने जवाब दिया कि जाकिर खुद दूसरे नंबर पर हैं और उन्हें गूगल करने की सलाह दी। जाकिर हुसैन का मानना था कि दुनिया में कई प्रतिभाशाली तबलावादक हैं, जो उनकी तरह तबला बजाते हैं और एक दिन उनसे भी बेहतर बन सकते हैं। उनके इस नज़रिए ने उन्हें न केवल एक महान कलाकार, बल्कि एक इंस्पिरेशन भी बनाया। हालांकि उनके निधन से संगीत जगत को भारी क्षति हुई है।
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