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Tumbbad Movie Review: गांधीजी के विचार पर बनी एक रीयल हॉरर फिल्म है तुम्बाड, राजकुमार राव और श्रद्धा कपूर की फिल्म स्त्री जैसी फनी नहीं

Tumbbad Movie Review: बॉलीवुड से लेकर हॉलीवुड तक हॉरर फिल्में बनती आई है. गांधीजी के विचार पर एक हॉरर फिल्म तुम्बाड रिलीज हुई है. यह फिल्म राजकुमार राव और श्रद्धा कपूर की फिल्म स्त्री जैसी फनी नहीं है लेकिन आपको पसंद जरुर आएंगी. फिल्म की कहानी भी काफी मजेदार है. फिल्म में आपको भरपूर हॉरर देखने को मिलेगा

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A real horror film made on Gandhiji's idea make your fun, but Tumbbad flim is not lika Rajkumar Rao and Shraddha Kapoor's film stree
  • October 9, 2018 6:06 pm Asia/KolkataIST, Updated 6 years ago

बॉलीवुड डेस्क, मुंबई. अब तक जो हॉरर फिल्में बनती आई हैं, उनमें या तो हालिया रिलीज ‘स्त्री’जैसा फन देखने को मिलता है, या फिर रामसे ब्रदर्स की फिल्मों की तरह सैक्स का तड़का वाला हॉरर. पुराने जमाने की ‘जानी दुश्मन’जैसी फिल्मों में कई बड़े स्टार और मनमोहक गानों के साथ फिल्म को पेश किया गया तो नेटफ्लिक्स पर हालिया रिलीज ‘घूल’में हॉरर भरपूर था, तो साथ में बेबसीरीज के चलते गालियों की भरमार की लिबर्टी डायरेक्टर ने ले ली। ऐसे में तुम्बाड में ना बड़े स्टार हैं, ना स्त्री जैसा फन, ना घूल जैसी गालियां, ना ही रामसे ब्रदर्स की तरह सैक्स का तड़का और गाना तो शायद एक भी नहीं है। ये फिल्म एक रीयल हॉरर फिल्म है, लेकिन गांधीजी के एक बड़े मशहूर विचार पर बनी है.

गांधीजी ने कभी कहा था कि ये दुनियां लोगों की ‘नीड’तो पूरी कर सकती है, लेकिन ‘ग्रीड’नहीं. मूवी शुरू होने से पहले परदे पर गांधीजी का ये विचार लिखा भी हुआ आता है. फिल्म की कहानी 1918 से शुरू होती है, इस बैकग्राउंड के साथ इस दुनियां को बनाने वाली देवी की पहली संतान हस्तर ने दुनियां का सारा सोना खा लिया, वो पूरे अनाज को भी खाने वाला था कि बाकी देवता नाराज हो गए और हस्तर को मजबूर कर दिया कि वो फिर से देवी के गर्भ में ही रहे और उसे कोई नहीं जान पाए. लेकिन पुणे के पास के एक गांव तुम्बाड का दबंग आदमी सरकार हस्तर का मंदिर अपने किलेनुमा घर बाड़ा में बनवा देता है. उस अकेले बूढ़े की हर तरह से सेवा गांव की एक विधवा ब्राह्मणी (ज्योति मालशे) करती है इस लालच में कि एक दिन सोने की मुद्रा मिलेगी, इस बाड़े में दबे खजाने से. उस बूढ़े की लकड़ दादी को भी वो अपने घर में बांधकर रखती है. उस दादी को कभी हस्तर ने काट लिया था, तब से वो जॉम्बीज की तरह हो गई है, लेकिन वो मरती भी नहीं.

सरकार के मरते ही उस बूढ़ी को अपने घर में ही छोड़कर वो औरत अपने एक बच्चे को खोकर दूसरे से कभी तुम्बाड ना आने की शर्त के साथ गांव छोड़ देती है, एक सोने की मुद्रा के साथ. लेकिन मां के मरते ही विनायक (सोहम शाह) लालच में तुम्बाड़ वापस आता है और एक खास तरीके से बाड़े में बने कुएं से थोड़ी थोड़ी स्वर्ण मुद्राएं ले जाता है. उसकी जिंदगी ऐसे ही कटती है, लेकिन लालच में स्व्रर्ण मुद्राएं खरीदने वाला साहूकार बाडा पहुंचता है, और हस्तर का शिकार हो जाता है. विनायक की जिंदगी ऐसे ही कट जाती है तो वो अपने बेटे पांडुरंग (मो, समद) को कुएं में उतरने की ट्रेनिंग देकर उसे वो तरीका 1947 में दिखाता है, हस्तर से स्वर्ण मुद्राएं पाने का तरीका, जो काफी खौफनाक था. उसका बेटा पिता को लालच देता है एक ही बार में सोने के अंडा देने वाली मुर्गी को जिबह करने का तरीका, लेकिन लालच बुरी बला है, जिसे क्लाइमेक्स में काफी खौफनाक तरीके से फिल्माया गया है.

फिल्म के प्लस प्वॉइंट समझिए, फिल्म की प्रोडक्शन वैल्य काफी शानदार दर्जे की है, एक एक सीन में हॉरर उड़ेल दिया गया है। सिनेमेटोग्राफर के लिए काफी गुंजाइश थी, जो उसने अच्छे से भुनाया. फिल्म का सैटअप, आजादी से पहले का पुणे, तुम्बाड़ गांव और स्थानीय बाजार का सैट उम्दा था. एक्टिंग के मामले में भी विनायक, ज्योति, समद और बाकी सभी कलाकारों ने काफी मेहनत की और दिखी भी. चार लेखक और उनमें से दो डायरेक्टर्स राही अनिल वर्बे और आदेश प्रसाद ने कहीं भी फिल्म को एंटरटेनिंग बनाने के लिए फिल्म की मूल लाइन से छेडछाड़ नहीं की, हो सकता है गानों या कॉमेडी की कमी खले. लेकिन हॉरर की कमी पक्का नहीं खलेगी.

वेसे भी फिल्म वेनिस क्रिटिक्स वीक में ओपन करने वाली अब तक की पहली फिल्म होने की वजह से ही चर्चा में आ गई थी. उसके बाद शाहरूख के साथ जीरो डायरेक्ट कर रहे आनंद एल राय का नाम जुड़ने के बाद भी सुर्खियों में आई, तमाम लोगों को इसका चिलिंग ट्रेलर भी काफी पसंद आया. ऐसे में लोगों को इस मूवी में लॉजिक का इस्तेमाल करना जरुर भारी पड़ सकता है कि ऐसा क्यों हुआ? लेकिन प्रोडक्शन वैल्यू और असली हॉरर जोनर पसंद करने वालों के लिए ये मूवी देखने लायक है.

स्टार रेटिंग- 3 स्टार

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https://youtu.be/sN75MPxgvX8

 

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