Tragedy: 88 की उम्र में हुआ मशहूर गीतकार बीरेंद्रनाथ दत्ता का निधन , उम्र संबंधित बीमारियां थी वजह

नई दिल्लीः प्रख्यात शिक्षाविद, गायक और गीतकार बीरेंद्रनाथ दत्ता ने सोमवार को गुवाहाटी के एक अस्पताल में आखिरी सांस लेकर दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया। लंबी बीमारी से जंग लड़ने के बाद बीरेंद्रनाथ का 88 की उम्र में निधन हो गया। इस बात की जानकारी उनके परिवार की ओर से दी गई […]

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Tragedy: 88 की उम्र में हुआ मशहूर गीतकार बीरेंद्रनाथ दत्ता का निधन , उम्र संबंधित बीमारियां थी वजह

Sachin Kumar

  • October 23, 2023 4:22 pm Asia/KolkataIST, Updated 1 year ago

नई दिल्लीः प्रख्यात शिक्षाविद, गायक और गीतकार बीरेंद्रनाथ दत्ता ने सोमवार को गुवाहाटी के एक अस्पताल में आखिरी सांस लेकर दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया। लंबी बीमारी से जंग लड़ने के बाद बीरेंद्रनाथ का 88 की उम्र में निधन हो गया। इस बात की जानकारी उनके परिवार की ओर से दी गई है। बीरेंद्रनाथ अपने पीछे परिवार में पत्नी, एक बेटा और दो बेटियों को छोड़ गए हैं। जानकारी है कि बीरेंद्रनाथ दत्ता लंबे समय से उम्र संबंधित तमाम बीमारियों से पीड़ित थे, और हाल ही में तबीयत ज्यादा बिगड़ने के कारण उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था। हालांकि, इस जंग में सोमवार को वह हार गए और सबको अलविदा कर चले गए। वर्ष 2009 में कला और साहित्य के क्षेत्र में पद्मश्री से सम्मानित, बीरेंद्रनाथ दत्ता ने यहां बी बरुआ कॉलेज में एक शिक्षाविद के रूप में अपना करियर शुरू किया और लोकगीत विभाग के प्रमुख रूप में सेवानिवृत्त होने से पहले, राज्य के विभिन्न कॉलेजों में पढ़ाया।

काफी रूपों में कार्य किए

सेवानिवृत्ति के बाद, वह तेजपुर विश्वविद्यालय में पारंपरिक संस्कृति और कला रूपों के विभाग में प्रोफेसर के रूप में शामिल हुए। एक प्रख्यात गीतकार, दत्ता ने कई गीत लिखे और उनमें से कई को गाया भी, जिसमें ‘बोहु दिन बोकुलोर गुंध पूवा ने’ उनके सबसे लोकप्रिय गीतों में से एक है। वह 2003 से दो कार्यकाल के लिए असम के प्रमुख साहित्यिक संगठन असम साहित्य सभा के अध्यक्ष और गुवाहाटी आर्टिस्ट गिल्ड के आजीवन सदस्य भी रहे।

प्रतिष्ठित लेखक भी रहे थे

बीरेंद्रनाथ दत्ता एक मशहूर लेखक भी थे। उनकी कुछ प्रमुख पुस्तकों में ‘पूर्वोत्तर भारत की सांस्कृतिक रूप रेखा’ और ‘शंकर माधवन मनीषा अरु असोमर सांस्कृतिक उत्तराधिकार’ भी शामिल हैं और मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने अपने शोक संदेश में बोलै कि भाषा विज्ञान और संस्कृति के प्रख्यात शोधकर्ता के निधन की खबर ने संस्कृति, कला और संगीत के क्षेत्र में एक बड़ा शून्य छोड़ देने का काम किया है। उन्होंने कहा, ‘मैं असम साहित्य सभा के पूर्व अध्यक्ष की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करता हूं और शोकाकुल परिवार के सदस्यों के प्रति अपनी गहरी संवेदना व्यक्त करता हूं।’

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