मुंबई: ब्रॉडकास्टिंग कंटेंट कंप्लेंट काउंसिल (बीसीसीसी) ने मंगलवार को मनोरंजन चैनलों से टेलीविजन कार्यक्रमों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का चित्रण करते समय दोनों समुदायों के सदस्यों की भावनाओं को ठेस करने से बचने के लिए अत्यधिक सावधानी बरतने को कहा है. हालांकि परिषद की ओर जारी की गई एडवाइजरी में कहा गया है कि चैनलों को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदायों के सदस्यों की कहानियों का चित्रण करते समय ये सुनिश्चित करना चाहिए कि कहानियों की बारीकियों और मानवीयता को संवेदनशीलता से संप्रेषित किया जाए और प्रदर्शित हिंसा समुदायों या पीड़ितों को पुन: आघात न पहुंचाए.
इसमें आगे कहा गया है कि ये समझा जा सकता है कि कई नैतिक आयाम वाली कहानियों में अच्छे और बुरे के चित्रण की आवश्यकता होती है. हालांकि ऐसा करते समय चैनल को ये सुनिश्चित करना चाहिए कि वो ऐसी भाषाओ का उपयोग न करें जो गैरकानूनी हो और जो किसी विशेष समुदाय की भावनाओं को ठेस पहुंचा सकती हो.
बता दें कि 2011 की जनगणना के मुताबिक भारतीय आबादी का कुल 16.6 प्रतिशत और 8.6 प्रतिशत क्रमशः एससी और एसटी समुदायों से संबंधित है. बीसीसीसी अध्यक्ष न्यायमूर्ति गीता मित्तल द्वारा अनुमोदित सलाह में कहा गया है कि ” ये कोई छोटी संख्या नहीं है. इसलिए ये सुनिश्चित करने पर ध्यान दिया जाना चाहिए कि एससी और एसटी समूहों के प्रति अपमान और उपहास के शब्दों को स्क्रिप्ट से बाहर रखा जाए.” इनमें अपमान के रूप में इस्तेमाल किए गए जातियों के नामों को दर्शाने वाले शब्द या एक निश्चित जाति समूह की सदस्यता के कारण किसी व्यक्ति को अपमानित करने के इरादे से इस्तेमाल किए गए शब्द भी शामिल हैं.
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