बॉलीवुड डेस्क, मुंबई.
फिल्म- सुपर 30
कलाकार- ऋतिक रोशन, मृणाल ठाकुर
निर्देशक- विकास बहल
स्टार रेटिंग- 3.5
एक दौर में कभी आमिर खान की सुपर 30 इंजीनियरिंग के युवाओं के लिए आई थी और उसने झंडे गाड़ दिए थे, जिसमें जितनी कॉमेडी उतना इमोशन था और उतना ही म्यूजिक दमदार था. ऋतिक रोशन की सुपर 30 मैथमेटीशियन आनंद कुमार की बायोग्राफी की सीमाओं में बंधे होने की वजह से कॉमेडी और म्यूजिक के मामले में थोड़ा पिछड़ गई लेकिन इमोशनल और इन्पिरेशन लेवल पर उससे कहीं बेहतर साबित हुई. ऐसे में अगर आप छोटे शहर के हैं, गांव-कस्बे के हैं या शहरों में रह रहे मध्यमवर्गीय या गरीब परिवारों के युवा हैं, जिन्हें विरासत में ना रिश्ते मिले हैं और ना ही रईसी तो ये मूवी आपके लिए मस्ट वाच है.
आनंद कुमार की कहानी तो मोटे तौर पर सबको पता ही है, सो सबको पता है कि मूवी में क्या होने वाला है, ऐसे में डायरेक्टर और हीरो के सांमने मुश्किल ये थी कि ट्रीटमेंट कैसा किया जाए कि लोग इस मूवी को पसंद करें। सो सबसे ज्यादा मेहनत कास्टिंग में की गई. ऋतिक रोशन के साथ रोमांटिक रोल में मृणाल ठाकुर को छोटे रोल में कास्ट किया गया, वीरेन्द्र सक्सेना उनके पिता के तौर पर, भृष्ट शिक्षा मंत्री के रोल में पंकज त्रिपाठी, कोचिंग संचालक के तौर पर सीआईजी वाले आदित्य श्रीवास्तव, नरेटर फुग्गा के रोल में विजय वर्मा जैसे मंझे हुए चेहरों को तो छोटे भाई के रोल में नंदीश सिंह जैसे युवा मॉडल को मौका मिला. सबसे ज्यादा दिलचस्प था सुपर 30 के बच्चों को चुनना, जो दिखने में गरीब ना हों, बल्कि वाकई में हों भी. ऐसे में कास्टिंग इस मूवी का उतना ही बड़ा फैक्टर है जितना फिल्म का स्क्रीन प्ले, डायलॉग्स और म्यूजिक.
किसी किरदार का संघर्ष तभी पता चलता है जब वो इतनी ऊंचाई पर पहुंचे जिससे कि लोगों को हैरत हो, तो आनंद कुमार का कद दिखाने के लिए मूवी का पहला सीन जान डाल देता है, जब नरेटर फुग्गा के रोल में विजय वर्मा विदेशियों के बीच उनका बखान शुरू करता है औऱ मूवी शुरू हो जाती है . काफी मेहनत फिल्म के डायलॉग्स में की गई, खास तौर पर युवाओं को उसके तमाम सवाल याद होने वाले हैं मसलन तीस लोगों ने एक दूसरे से हाथ मिलाया तो कुल कितने बार हाथ मिले, चतुर सिंह त्रिपाठी फुटबॉल मैच का स्कोर शुरू होने से पहले कैसे बता देता है, 130 किमी की गति से गेंद फेंक रहे शोएब अख्तर की बॉल पर छक्का मारने के लिए सचिन को कितने फोर्स से बल्ला घुमाना पड़ेगा आदि. नियम वाले गाने में उसकी झलक देखने को भी मिलती है.
मूवी के किरदार, रामगढ़ फोर्ट में लगा सुपर 30 का सैटअप, विटी डायलॉग्स और इमोशनल सींस मूवी को धीरे धीरे आगे बढ़ाते हैं और बसंती नो डांस इनफ्रंट ऑफ दीज डॉग्स गाने तक वो चरम पर पहुंचती है, जब आप मूवी के साथ जुड़ जाते हैं. जुडते भी वहीं हैं जिन्होंने गरीबी, अंग्रेजी या पहुंच की कमी के चलते मौके नहीं मिल पाए या मुश्किलें झेलीं. ये अलग बात है कि क्लाइमेक्स और बेहतर प्लान किया गया होता तो ये मूवी महान बन जाती, लेकिन फिर भी एक बार देखनी तो बनती है. ये पहली हिंदी मूवी है, जो बीएचयू में शूट हुई है.
संगीतकार अजय अतुल ने गीतकार अमिताभ भट्टाचार्य और गायकों के साथ मिलकर मेहनत तो काफी की है, नियम और बसंती नो डांस गाने अच्छे बन भी पड़े हैं. फिल्म के सेट्स भी अच्छे हैं, हर सीन को विहंगम बनाने की कोशिश लाउड बैकग्राउंड म्यूजिक से भी की गई है. लेकिन कई सींस कनविंसिंग नहीं लगते, प्रेमिका का आसानी से चले जाना, अचानक सुपर 30 का प्लान बनाना, आनंद के किरदार का लल्लन के सामने करार से मुकरना आदि. क्लाइमेक्स भी कमजोर है और उसकी वजह है हृतिक आमिर की तरह रोल में तो घुसते हैं लेकिन स्क्रिप्ट में उतना दखल नहीं देते, नहीं तो एक दो बड़े ड्रामेटिक टर्न और बायोग्राफी में कुछ फिक्शनल एंगल डालकर इस मूवी को थ्री ईडियट जैसी बना सकते थे.
कुल मिलाकर मूवी इन्सपायर होने के लिए है, मनोरंजन के लिए नहीं. एक बार देखना तो बनता ही है, हृतिक रोशन के फैसे के लिए अपने क्रिश को फिजीकल की बजाय मेंटली मजबूत देखकर मजा आएगा तो प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारियों मे जुटे युवाओं, उनके पेरेंट्स और उनके टीचर्स को भी ये मूवी जरुर देखनी चाहिए. वैसे इन्सपायर होने के लिए एक ही डायलॉग काफी है- राजा का बेटा राजा नहीं बनेगा, वही बनेगा जो हकदार होगा. एक तरह से ‘काला’ जिस तरफ नेगेटिव तरीके से इशारा कर रही थी, उसी तरफ ले जाने का पॉजीटिव रास्ता दिखाती है सुपर 30. ये अलग बात है कि आनंद के पहले बैच पर ही ये मूवी खत्म हो जाता ही, आज कई तरह के विवादों में फंसे आनंद की जिंदगी को दिखाने के लिए इसका सीक्वल बनाना पड़ेगा.
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