नई दिल्ली : लंबे समय के बाद बॉलीवुड फिर हरा-भरा होने जा रहा है. फिल्म ‘चुप’ को देख कर ऐसा ही लगता है सनी देओल का कमबैक शोर मचाने वाला है. फिल्म की बात करें तो आर बाल्की का डायरेक्शन स्क्रीन से आपकी नज़र हटने नहीं देगा. क्राइम थ्रिलर फिल्मों की दुनिया में ‘चुप’ को जनता से पहले ही अच्छा रिस्पॉन्स मिला था.
ट्रेलर की ही बात करें तो यूट्यूब पर इसे 14 मिलियन से अधिक रिव्यु मिले हैं. लेकिन यहां हम पूरी फिल्म की बात करने जा रहे हैं. तो क्या आपको ‘चुप’ देखनी चाहिए? फिल्म 23 सितंबर को रिलीज़ हो चुकी है. आइए जानते हैं फिल्म के अच्छे और बुरे पॉइंट्स के बारे में.
चुप एक क्राइम थ्रिलर फिल्म है जिसे देखते हुए आपको बॉलीवुड का ड्रामा याद नहीं आएगा. फिल्म का सबसे अच्छा पॉइंट यही है कि यह किसी भी गैर जरूरी ड्रामे से हटकर सच्चाई को दिखाती है. फिल्म को देखते समय आपका ध्यान प्यार या रोमांस पर नहीं जाता है बल्कि एक सिंपल फिर भी घुमाऊ कहानी पर रहता है. बात करें कहानी की तो ये फिल्म सीरियल किलर पर आधारित है जो फिल्म समीक्षकों से नाराज है. फिल्म इसी के इर्द-गिर्द घूमती है.
फिल्म को देखते समय आपको गुरु दत्त से प्रेरित बॉलीवुड का क्लासिक टच और फिल्म जगत से जुड़ाव भी महसूस होगा. फिल्म समीक्षकों से नाराज़ सीरियल किलर गुरु दत्त से ही प्रभावित है और सिनेमा को बचाने के लिए खून कर रहा है. फिल्म समीक्षकों की कहानी पर केंद्रित है जिससे आप भी कहीं ना कहीं फिल्म देखते समय इसे अपने नज़रिए में उतार लेते हैं.
इसके अलावा फिल्म को रियल लाइफ गुरु दत्त स्टोरी से जोड़ना एक अच्छा मूव है. क्योंकि फिल्म की कहानी इससे और भी ज़्यादा दमदार बन जाती है. पुराने गानों को फिर से जीवंत किया गया है. जहां आप भी गुरुदत्त की एल्बम को थिएटर में बजता देख काफी एन्जॉय करेंगे.
फिल्म का अंत आपको निराश नहीं करता है. फिल्म में किसी भी तरह के एक्शन से बचते बचाते डायरेक्टर ने काफी सफाई और सच्चाई से अंत की ओर कदम रखा है. चुप में क्लाइमेक्स तक किरदारों खासकर सीरियल किलर के बारे में जानने की इच्छा बनी रहती है जो कहीं ना कहीं फिल्म को पूरी तरह से ज़िंदा रखे हुए है. फिल्म का अंत सुखद है भी और नहीं भी. यह आपको क्राइम थ्रिलर होने का एहसास करवाता है. क्लाइमेक्स ने फिल्म की कहानी और इसके किरदारों के साथ पूरी ईमानदारी दिखाई है.
आपको पंच लाइन की कमी महसूस नहीं होगी. हर किरदार अपने आप में हास्य की कला से भरपूर है. जहां कई बार आप पंचेस को आते हुए देख भी नहीं पाते हैं. असामान्य ढंग से सामान्य बातों में कॉमेडी को पेश करने की कोशिश की गई है.
सरप्राइज और जंप स्कैर्स की कमी है. क्राइम थ्रिलर फिल्मों के मुकाबले चुप की कहानी से आप बंध तो जाते हैं लेकिन चौंकाने के मामले में फिल्म थोड़ी फेल है.
आपको पहले से ही कहानी का विलेन और हीरो पता चल जाता है. हालांकि इसमें कोई दो राय नहीं है कि फिल्म ख़त्म होने के साथ आप ये निर्णय लेने में असफल होंगे की आखरी फिल्म का विलेन असल विलेन है या नहीं.
फिल्म को दर्शकों का अच्छा रिस्पॉन्स मिल रहा है. सोशल मीडिया सनी देओल की फिल्म ‘चुप’ के रिव्यु से भरा हुआ है जहां इस फिल्म को अधिकांश अच्छे रिव्यु ही मिले हैं. फिल्म की रिलीज़ डेट ‘चुप’ के लिए एक अच्छा मौका भी है जहां फिल्म नेशनल फिल्म फेस्टिवल के दिन रिलीज़ हो रही है.
इसी उपलक्ष में फिल्म की टिकट पर डिस्काउंट भी दिया जा रहा है जहां पूरे भारत में सिनेमा डे के मौके पर लोग 75 रुपये में कोई भी फिल्म देख सकते हैं. फिल्म को देख कर कई लोग इसे मेकर्स की ओर से गुरु दत्त को दी गई श्रद्धांजलि भी मान रहे हैं. क्राइम थ्रिल की समझ और इसमें दिलचस्पी रखने वालों को यह फिल्म जरूर देखनी चाहिए. साथ ही उन लोगों को भी इस फिल्म को देखना चाहिए जिनका लगाव भारतीय सिनेमा से रहा है.
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