Sui Dhaaga Review: एक्टर्स वरुण धवन और अनुष्का शर्मा की फिल्म सुई धागा आज सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है. फिल्म की कहानी ममता और मौजी की है जो खुद का रोजगार शुरु करने के लिए कई संघर्ष करते है. फिल्म की कहानी एक मिडिल क्लास फैमिली के बड़े सपनों को पूरा करने की है जिसे अनुष्का और वरुण अपनी फिल्म के जरिए दर्शकों तक पहुंचा रहे है. फिल्म कैसी और आपको क्यों देखनी चाहिए इसके लिए पढ़े पत्रकार विष्णु शर्मा का रिव्यू
बॉलीवुड डेस्क, मुंबई. अगर आप छोटे शहर या लोअर मिडिल क्लास के हैं और सपने बड़े हैं, तो आपको मौजी की कहानी अपनी सी लगेगी। ये मूवी ‘सुई धागा’ आपको बताएगी कि आपको ना केवल हनुमान की तरह एक जामवंत की जरूरत है, बल्कि एक रामायण जैसे मौके की भी जरुरत है। जामवंत आपको आपकी सोई ताकत के बारे में बताएगा, प्रेरणा देगा और मौका आपको उस हुनर को दिखाने का चाहिए ही ताकि वो दुनियां की नजरों मे आ सके। लेकिन क्या सुई धागा एंटरटेनमेंट के स्तर पर भी खरी उतर पाई, जिसको देखकर आप कह पाएं कि सब बढिया है।
ये फिल्म शरत कटारिया की बतौर डायरेक्टर तीसरी मूवी है, इससे पहले 2015 में उन्होंने जोर लगाके हईशा से नए डायरेक्टर्स की जमात में अपनी पहचान बनाई थी। हालांकि कई फिल्मों के लिए राइटिंग करने के बाद, असिस्टेंट डायरेक्टर रहने के बाद उनका तर्जुबा तो इस मूवी में दिखता है, लेकिन फिर भी ऐसी फिल्म तो नहीं बन पाई कि हर कोई कहे सब बढ़िया है।
फिल्म की कहानी वही है जो ट्रेलर में दिखी एक लाइन की, बीवी को पति का एक दुकान पर नौकरी करना, मालिकों की मसखरी का पात्र बनकर अपनी मजाक उडवाना पसंद नहीं आता, वो उसकी नौकरी छुडवाकर सिलाई के उसके हुनर को आजमाकर खुद का काम करने को कहती है। लेकिन रास्ता आसान नहीं होता और फिर उसे मौका मिलता है एक प्रतियोगिता में अपने डिजाइन भेजने का। असली था इस संघर्ष को दिखाना, जबकि आपके पास सिलाई मशीन खरीदने तक के पैसे नहीं है।
फिल्म को छोटी छोटी घटनाओं, सिचुएशनल कॉमेडी, छोटे कस्बे के किरदारों और भरपूर इमोशंस के जरिए बेहतरीन तरीके से शरत कटारिया ने फिल्माया है, जिसमें उनकी मदद अनु मलिक के मेलोडी म्यूजिक से सजे वरुण ग्रोवर के गीतों ने की। जिन लोगों ने ‘स्त्री’ में एमपी के कस्बे चंदेरी की गलियां देखी थीं, सुई धागा में भी वही गलियां दिखेंगी, और इस फिल्म का हीरो भी टेलर ही है। ये अलग बात है कि कहानी दिल्ली के पास यूपी में दिखाई है। इसीलिए फिल्म अक्सर कन्फ्यूज करती है क्योंकि दिल्ली के पास अगर कोई भी कस्वा है तो वहां कोई भी बस आखिरी नहीं होती। मोबाइल होने के बावजूद एक अहम सीन में ममता के पास मोबाइल नहीं है, कहां उनके पास सिलाई मशीन के लिए पैसा नहीं था, और कहां वो इतने कपड़े डिजाइन कर लेते हैं बिना खास मदद के। मैक्सी की डिजाइन वाला सीन डालने के लिए हॉस्पिटल की कहानी भी गढ़ी गई। कहीं ना कहीं फिल्म कनविंस करने में कमजोर तो होती है।
हालांकि हर उस व्यक्ति को ये मूवी पसंद आएगी, जो सपनों को देखते हैं, और संसाधन कम होने के चलते सपनों को छोड़ देते हैं और अपना काम करने में हिचकते हैं। लेकिन ऐसी भी नहीं है कि अगर आपने इसे मिस कर दिया ,नहीं देख पाई तो कोई आपसे आकर ये कहे कि यार तूने ‘थ्री ईडियट’ नहीं देखी। हालांकि विराट कोहली, अनुष्का शर्मा और वरुण धवन के फैन ये मूवी जरुर देखें क्योंकि दोनों ने वाकई में अच्छी एक्टिंग की है। पटाखा के बाद नमित दास इसमें भी गुड्डू के रोल में जमे हैं, बाकी सब बढ़िया है।
स्टार- 3.5
Sui Dhaaga Movie Review: पक्के धागे से बुना है अनुष्का शर्मा और वरुण धवन की सुई धागा का सफर