बॉलीवुड डेस्क,मुंबई. जब सेक्रेड गेम्स सीजन 1 के आठ एपिसोड रिलीज हुए थे, तो जितनी चर्चा उनको बोल्ड सींस और गालियों की नहीं हुई थी, उससे ज्यादा चर्चा इस डायलॉग की हुई थी कि राजीव गांधी फट्टू है. कांग्रेस के मुंबई कार्यकर्ताओं ने तो मेकर्स पर केस कर दिया था, ऐसे में ये तय मानकर चला जा रहा था कि अनुराग कश्यप के संघ विरोधी रुख को देखते हुए इस बार निशाने पर संघ हो सकता है और वाकई में सेक्रेड गेम्स सीजन 2 में एक ऐसा सीन है, जो साफ तौर पर संघ परिवार पर निशाना माना जा सकता है. दो और व्यक्तियों पर निशाना साधा गया है, एक हैं ओशो रजनीश, पंकज त्रिपाठी के किरदार के जरिए और दूसरी तरफ विजय मौर्या के किरदार के जरिए फिल्ममेकर रामगोपाल वर्मा का भी मजाक उडाया गया है, जिनके अनुराग कश्यप कभी असिस्टेंट रहे हैं
दरअसल सीजन 2 में मॉब लिचिंग का एक सीन डाला गया है और मॉब लिंचिंग जहां भी होती है, केन्द्र में मोदी सरकार होने के चलते और ज्यादातर मुस्लिमों के साथ होने के चलते या गौ तस्करी से जुड़ा होने के चलते उन सभी को संघ परिवार से जोड़ने की कोशिशें की जाती रही हैं. सेक्रेड गेम्स सीजन 2 में भी मॉब लिचिंग का एक सीन डाला गया है. जबकि देखने पर पता चलेगा कि उस सीन की कोई खास जरुरत नहीं थी. दूसरे आमतौर पर जितनी मॉब लिंचिंग हुई हैं, वो गौ तस्करी, बीफ रखने या अन्य किसी चोरी आदि में लिप्त होने पर लोगों का फौरी गुस्सा होता है. सेक्रेड गेम्स में क्रिकेट के मैदान में लड़ाई के बाद एक मुस्लिम ल़डके को गायब करके बंधक बना लिया जाता है और कई दिनों बाद उसे सैकड़ों की भीड़ के बीच उसे मारा जाता है. जिससे फौरी गुस्से वाला एंगल नहीं आता.
सेक्रेड गेम्स का मेन विलेन भी एक साधु को दिखाया गया है, वो वैदिक संस्क़ृति, महाभारत, पुराणों आदि से जिस तरह से प्रसंग सुनाता है, उन्हीं प्रसंगों के आधार पर मत्स्य, विकर्ण आदि नाम रखे गए हैं. लेकिन पंकज त्रिपाठी का ये किरदार उनकी सहयोगी कल्कि के साथ बिलुकल ओशो रजनीश जैसा लगता है, विदेश में आश्रम और आश्रमों में खुलकर होता योनाचार ओशो की संभोग से समाधि की यादें ताजा कर देता है. सोशल मीडिया में ओशो और पंकज त्रिपाठी के किरदार के साम्य की तुलना हो रही है.
इसी तरह विजय मौर्या का किरदार तो पक्की तौर पर रामगोपाल व्रर्मा का है, जो गायतुंडे की कहानी पर फिल्म बनाता है. उसका रामू की स्टाइल में बोलना, उसका नाम और उसका बार बार श्रीदेवी बोलना साफ इस तरफ इशारा करता है. लेकिन सबसे दिलचस्प सवाल ये है कि सेक्रेड गेम्स के मेकर्स ने जिस तरह से भगवान के नाम पर गालियां दिखाईं, वैसी हिम्मत वो खुदा के नाम पर नहीं दिखा पाए, जिस तरह उन्होंने राजीव गांधी को फट्टू बुलवाया, उतनी हिम्मत वो 1993 के मुंबई ब्लास्ट के आरोपियों दाऊद इब्राहिम एंड कंपनी का असली नाम तक नहीं रख पाए, उन्हें ईशा, शाहिद खान आदि दिखाते रहे.
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