Padmaavat Film Review: ‘हां इतिहास के साथ तो हुई है छेड़छाड़’ पढ़िए दीपिका पादुकोण, शाहिद कपूर और रणवीर सिंह की ‘पद्मावत’ का फिल्म रिव्यू

दीपिका पादुकोण, रणवीर सिंह और शाहिद कपूर की फिल्म 'पद्मावत' भले ही आपको पसंद आये, लेकिन ये फिल्म बाहुबली जैसी फिल्म देख चुके दर्शकों को उसके आगे फीकी ही लगेगी. आमतौर पर जब सबको कहानी पता होती है तो उम्मीद की जाती है डायरेक्टर से की वो कुछ सरप्राइजिंग एलिमेंट दर्शकों के लिए रखे, उसी में मात खा गए हैं संजय लीला भंसाली.

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Padmaavat Film Review: ‘हां इतिहास के साथ तो हुई है छेड़छाड़’ पढ़िए दीपिका पादुकोण, शाहिद कपूर और रणवीर सिंह की ‘पद्मावत’ का फिल्म रिव्यू

Aanchal Pandey

  • January 24, 2018 11:03 am Asia/KolkataIST, Updated 7 years ago

नई दिल्ली: पद्मावत को देखने के बाद लगता है कि विरोध खिलजियों को करना चाहिए, अगर कहीं बचे हैं तो. राजपूतों को विरोध करना था तो आमिर खान की फिल्म ‘जो जीता वही सिकंदर’ का करना था, पूरी फिल्म में स्लोगन लगता है- सबसे आगे लड़के कौन, राजपूत.. राजपूत और जीत जाते हैं मॉडल कॉलेज वाले. ये अलग बात है कि उन दिनों न्यूज़ चैनल नहीं थे. वैसे फिल्म भले ही आपको पसंद आये, लेकिन ये फिल्म बाहुबली जैसी फिल्म देख चुके दर्शकों को उसके आगे फीकी ही लगेगी. आमतौर पर जब सबको कहानी पता होती है तो उम्मीद की जाती है डायरेक्टर से की वो कुछ सरप्राइजिंग एलिमेंट दर्शकों के लिए रखे, उसी में मात खा गए हैं संजय लीला भंसाली. जो कहानी सबको पता है उसको ही ड्रामेटिक तरीके से फिल्मा दिया है भंसाली ने, भव्य सेट और शानदार विसुअल इम्पैक्ट के तो वो माहिर हैं ही. बल्कि उलटे राजपूतों को खुश करने के लिए और रणवीर सिंह के खलनायक रूप को उभारने के लिए खिलजी को जितना बुरा हो सकता था, बनाया है. तो इस तरह से कहा जा सकता है कि राजपूतों को खुश करने के लिए इतिहास के साथ छेड़छाड़ की गई है. उसकी सेक्सुअलिटी, उसकी किरदार की लाउडनेस, उसका कमीनापन और वो सब कुछ जिसके चलते रणवीर का किरदार दमदार हो और इसी वजह से रणवीर के फैंस को पसंद भी आएगी ये मूवी, किसी हीरो का ये पहला नेगेटिव किरदार होगा, जिसमें कि उसके पास अपने बुरे काम को ठीक साबित करने का कोई लॉजिक नहीं होगा. तो कहानी वही है जो जायसी के पद्मावत में लिखी है, जब चित्तोड का राजा रावल रतन सिंह अपने राजगुरु तांत्रिक राघव चेतन को महारानी पद्मावती पर बुरी नजर रखने के चलते देश निकाला दे देता है तो वो अलाउद्दीन को रानी की सुंदरता के बारे में बताता है.

अलाउदीन रानी को पाने के लिए चित्तोड़ पर घेरा डालता है, लेकिन महीनों में भी कामयाबी नहीं मिलती तो सुलह के नाम पर चित्तोड़ अकेला जाता है और रानी की एक झलक की जिद करता है, जो शीशे में दिखा दी जाती है, उसके निमंत्रण पर रतन सिंह भी उसके कैंप में जाता है तो उसे उठाकर ले आता है दिल्ली, जहां रानी पद्मावती को बुलाने की शर्त रखता है, पद्मावती अलाउद्दीन की बीवी की मदद से रतन सिंह को छुड़ा लाती है और फिर अलाउद्दीन करता है चित्तोड़ पर आक्रमण, धोखे से रतन सिंह की हत्या और पद्मावती का सैकड़ों महिलाओं के साथ जौहर. फिल्म के जरिये लोग राजपूतों की शान और उसूलों से तो परिचित होंगे ही, ये भी जानेंगे कि किस वजह से देश गुलाम रहा. 3-4 सीन जो भंसाली ने अमीर खुसरो और अलाउद्दीन के बीच फिल्माए हैं उनसे ये भी पता चलेगा कि हमारे देश में इतिहास कैसे लिखा जाता रहा है और क्यों इन दरबारी इतिहासकारों की लिखी बातों को ज्यादा तव्ज्जो नहीं देनी चाहिए. फिल्म जरूर देखी जानी चाहिए, इतिहास के लिए भले ही वो नाटकीय तौर पर है, भंसाली के शानदार डायरेक्शन के लिए, रणवीर सिंह की जबरदस्त एक्टिंग के लिए, भारी भरकम कपड़ों और गहनों से लदे फदे शाहिद और दीपिका के हद में रहने वाले रोल्स के लिए और एक्टिंग की बात करें तो मलिक काफूर के रोल में जिम सरभ को भी आप बिना नोटिस किये नहीं रह पाएंगे, जिन को पता नहीं वो जान लें कि मलिक काफूर खिलजी का वो हिजड़ा गुलाम था, जो कोहिनूर आदि हीरे वारंगल से लूट कर लाया था, खिलजी का सबसे बड़ा लड़ाका, जिसने बाद में अलाउद्दीन के बेटे को अंधा करके मार डाला. फिल्म में उसके और खिलजी के सेक्सुअल रिश्तों की तरफ भी इशारा किया गया है.

रणवीर इस फिल्म की जान हैं, ‘खली वाली’ वाला गाना बाजीराव के गाने की याद दिलाता है. अगर शाहिद के हिस्से में राजपूती शान के डायलॉग्स आये हैं तो खिलजी के हिस्से में मक्कारी के बढ़िया डायलॉग्स. खिलजी की बीवी पूछती है, खौफ खाइये, तो वो खाने में क्या क्या हैं ये पूछता है, और फिर कहता है जब इतना कुछ है खाने में तो खौफ क्यों खाऊं. रणवीर के हिस्से में आये डायलॉग्स उसके बाजीराव वाले रोल की याद दिलाएंगे. घूमर के बाद खली बाली और एक दिल एक जान, दोनों तुझ पर कुर्बान अच्छे बन पड़े है. फिल्म हो सकता है 300-400 करोड़ कमाए, लेकिन ये बाहुबली के आगे फिर भी फीकी है. जब फिल्म फिक्शन ही बनानी थी तो स्पेशल इफ़ेक्ट्स का इस्तेमाल हो सकता था, कायदे के एक्शन से फिर बचे है भंसाली, जबकि काफी गुंजाइश थी. ऐसे ही सीन्स में जो इमोशंस बाहुबली में उभर कर कैलाश खेर के गाने में आये, वैसा कोई बेहतरीन गीत जौहर के सीन के लिये लिखा जा सकता था. बावजूद इसके फिल्म में मेहनत हुई है और एक बार देखना तो बनता है. अब ये अलग बात है कि फिल्म के शुरुआत में भंसाली ने जो अपनी प्यारी डॉगी लेडी पोपो को फोटो लगाकर इस सेंसेटिव फिल्म में जो श्रद्धांजलि दी ही है, कल को राजपूत कहीं इस बात से न भड़क जाएं.

स्टार-3.5

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