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Nutan Death Anniversary: नूतन और देव आनंद के इस गाने पर जब फंस गए थे मजरूह सुल्तानपुरी

नई दिल्ली: नूतन और देव आनंद के सुपरहिट गीत माना जनाब ने पुकारा नहीं… को कई पीढ़ियों ने गुनगुनाया है और उम्मीद है कि अलग अलग दौर में ये गाना रीमिक्स होकर अगली कई पीढ़ियों की जुबान पर बना रहेगा. इस गाने को लिखा था मजरूह सुल्तानपुरी साहब ने. नूतन और देवआनंद की फिल्म ‘पेइंग गेस्ट’ के इस गाने से शुरूआत हुई थी मजरूह सुल्तानपुरी और एसडी वर्मन की जोड़ी की. दरअसल साहिर लुधियानवी की जगह पहली बार सचिन देव वर्मन की फिल्म के लिए मजरूह सुल्तानपुरी को देव आनंद की फिल्म के लिए गाने लिखने का मौका दिया गया था, इसलिए मजरूह साहब कोई रिस्क लेने के मूड में नहीं थे.

फिल्म को डायरेक्ट कर रहे थे नूतन की बहन तनूजा के श्वसुर शशाधर मुखर्जी के भाई सुबोध मुखर्जी, सो कई गानों में नूतन को तबज्जो देनी पड़ी थी. इसके चलते मजरूह सुल्तानपुरी फंसे हुए थे. एक और दिक्कत मजरूह साहब के साथ ये थी कि देवआनंद, डायरेक्टर सुबोध मुखर्जी और फिल्म के राइटर नासिर हुसैन साहब की तिगड़ी दो साल पहले ही एक और सुपरहिट फिल्म ‘मुनीम जी’ दे चुकी थी, उसके गाने भी सुपरहिट थे, इसलिए मजरूह साहब से वैसे ही नतीजे चाहते थे। इसके चलते मजरूह साहब पर थोड़ा दवाब था.

जब उनको गाना लिखने के लिए बोला गया तो बताया गया कि हीरो देवआनंद मूवी में वकील है. मजरूह साहब को लगा कि वकील तो काफी सभ्य और इज्जतदार आदमी होता है, तो उसी हिसाब से गाना लिखा, लेकिन पहली बार में ही डायरेक्टर ने रिजेक्ट कर दिया, सचिन दा तक तो पहुंचा ही नहीं. वो कई बार बदल बदल के अलग अलग शब्दों और मुखड़ों के साथ इस गाने को सिचुएशन के हिसाब से लिख कर लाए लेकिन उस गाने को हर बार रिजेक्ट किया गया. कभी डायरेक्टर ने, कभी सचिन दा ने तो कभी खुद देवआनंद ने तो कभी नूतन ने.

मजरूह सुल्तानपुरी को लगा कि ऐसे बात बनेगी नहीं, या तो उन्हें सिचुएशन ठीक से बताई नहीं गई या फिर उनकी समझ में नहीं आ रही. तो उन्होंने तय किया कि वो फिल्म के थोड़े से रशेज देखेंगे, वो हिस्सा जो अब तक शूट हो चुका है. इससे उन्हें देवआनंद के किरदार ही नहीं फिल्म के बारे में भी कुछ आइडिया हो जाएगा, हवा में लट्ठ आखिरी कब तक चलाते रहेंगे.

तो वो डायरेक्टर सुबोध मुखर्जी की इजाजत से फिल्म के रशेज देखने स्टूडियो आए. जैसे ही उन्होंने देव आनंद के रोल की कुछ फुटेज देखीं, बोल पड़े- अरे ये तो लोफर का रोल है, मैं तो समझा था, वकील है तो कोई बड़ा आदमी होगा. नफासत पसंद इज्जतदार होगा. लीजिए इस लोफर के लिए तो अभी यहीं लिख देता हूं और वहीं बैठे बैठे फौरन लिख डाला मजरूह साहब ने ये गीत या कहिए ये लोफर वाला गाना देव साहब के लिए. माना जनाब ने पुकारा नहीं, फिर भी ये बात तो गवारा नहीं…. बाबूजी बन के..चल दिए तनके…वल्लाह जवाब तुम्हारा नहीं. किशोर कुमार ने इस गाने को इतनी मस्ती में गाया कि देव साहब भी फिदा हो गए… फिर तो ये गाना ऐसा चला, ऐसा चला कि हर गली-मोहल्ले- कॉलेज में लड़के गुनगुनाने लगे. देवआनंद भी खुश और नूतन भी.

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Aanchal Pandey

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