फिल्म- हल्का
स्टार **1/2
स्टार कास्ट- रणवीर शौरी , कुमुद मिश्रा
बॉलीवुड डेस्क, मुबंई. महानगरों की चकाचोंध के इतर महानगरीय स्लम बस्तियां भी हैं, और बॉलीवुड की तमाम फिल्मों का हिस्सा ये बस्तियां और यहां के लोग बनते रहे हैं. अंडरवर्ल्ड से लेकर जमीन पर कब्जे और इलाकाई गुडों की जंग के तौर पर ये बस्तियां फिल्मों का सेंटर बनती रही हैं. हाल ही में मुंबई की ऐसी बस्ती धारावी पर बनी रजनीकांत की मूवी ‘काला’को काफी पसंद किया गया था. लेकिन स्लम बस्ती के बच्चों की नजर से कोई फिल्म दिखाए, ऐसा काफी कम हुआ है. नीला माधब पांडा की फिल्म ‘हलका’एक ऐसी ही फिल्म है, जिसे मांट्रियल फिल्म फेस्टीवल में दुनियां भर से चुनकर आई साल चिन्ड्रन फिल्मों में दिखाया गया और अवॉर्ड भी मिला.
इस मूवी में रणवीर शौरी के अलावा कुमुद मिश्रा, पॉली जैसे जाने पहचाने चेहरे हैं तो कहानी का सेंट्रल किरदार पिचकू (तथास्तु) है, जो सेल्फ रेस्पेक्ट के चलते कभी भी खुले में शौच जाना नहीं चाहता. उसका पिता (रणवीर शौरी) रिक्शा चलाता है, मां (पॉली) एक अगरबत्ती फैक्ट्री में काम करती है. एक पिचकू का सपना है और एक उसके पिता का पिता चाहता है कि रिक्शा बेचकर ऑटो ले लूं तो पिचकू सोचता है कब तक वो अपने घर में या पटरी के पार वाली फैक्ट् में छुप छुप कर हलका होता रहेगा, एक टॉयलेट बनवा लूं वो और उसका दोस्त गोपी कचरा बीन बीन कर पैसे इकट्ठा भी करते हैं, उसकी भी यही समस्या है और तम्बू में यूनानी दवाएं बेचने वाला हकीम (कुमुद मिश्रा) भी इसी उलझन का शिकार है.
तीनों अपने सपने को पूरा करने में जुट जाते हैं, जबकि पिचकू का पिता सरकार से मिला टॉयलेट का पैसा ऑटो में लगा देता है, तो पुलिस उसे गिरफ्तार करने आ जाती है. ऐसे में पिचकू कैसे अचानक एक टॉयलेट प्रकट करके पिता को गिरफ्तारी से बचाता है, उसको काफी इमोशनल तरीके से फिल्माया गया है. जैसे टॉयलेट एक प्रेम कथा में गांव की समस्या को काफी फनी तरीके से दिखाया गया है, शहरी स्लम बस्ती में पिचकू की समस्या को फनी और इमोशनल दोनों तरीके से फिल्माया गया है. जिसे रणवीर, कुमुद और दोनों बच्चों की एक्टिंग ने और भी बेहतर बना दिया है.
इस मूवी को शिव नाडार फाउंडेशन की तरफ से बनाया गया है, ऐसे में उनके स्कूल में कुछ सीन फिल्माए गए हैं. रणवीर शौरी, कुमद मिश्रा आदि के गैटअप पर काफी काम किया गया जो दिखता भी है. शूटिंग के लिए दिल्ली में प्रगति मैदान के पास की स्लम को लिया गया और इंद्रप्रस्थ मेट्रो स्टेशन पर एक सैट लगाया गया. कुल मिलाकर संजीदा मूड से देखने वाली मूवी है कि कैसे इतने बड़े महानगर में टॉयलेट भी किसी के लिए इतनी बड़ी टेंशन हो सकता है. हालांकि थोड़े और फनी सींस व अच्छे गानों के जरिए या किसी प्रेम कहानी के जरिए मूवी और बेहतर हो सकती थी, लेकिन जो भी बनी है, उसके लिए भी दर्शक मूड बनाकर गए तो इतने निराश नहीं होंगे.
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