अगर आप गोलमाल सीरीज देखते आ रहे हैं तो फुकरे सीरीज की ये दूसरी फिल्म देखना आपको खलेगा नहीं, ना जेब से और ना वक्त से। अगर आप इस मूवी की लीगली और टेक्नीकली गलतियां निकालने के खुरपेच में फंसे रहे तो आप मूवी का मजा नहीं ले पाएंगे। सीधे शब्दों में टाइमपास मूवी है और एक भी बड़ा सितारा ना होने के वाबजूद अगर आपको गोलमाल जैसा ही मजा देती है, तो यकीन मानिए इस फिल्म में गोलमाल से ज्यादा मेहनत करनी पड़ी होगी।
फुकरे रिटर्न की शुरूआत में ही बाहुबली टू की तरह ही एक गाने के जरिए फुकरे पार्ट1 की कहानी समझा दी गई है, ताकि आपको रिमाइंड हो सके। कहानी जेल में कैद भोली पंजाबन (रिचा चड्ढा) से होती है, जो भ्रष्ट मंत्री बाबूलाल भाटिया (जॉली एलएलबी में अक्षय का असिस्टेंट बीबल) यानी राजीव गुप्ता से 10 करोड़ 10 दिन में देने का वायदा करके जेल से बाहर आ जाती है। जेल से बाहर आकर वो चूचा (वरुण शर्मा) की उसी सपने देखने की चमत्कारिक क्षमता का फायदा लेने के लिए उन चारों को धमकाकर उनकी एक कंपनी खुलवाती है, लॉटरी कंपनी, लोगों से स्टाम्प पर दोगुने देने का लालच करके। लॉटरी वाले का संरक्षक है मंत्री जो उन लडकों की खबर उसे देता है, जिस नंबर पर वो लोग जनता की सारी जमापूंजी लगाते हैं, वही मंत्री पलटवा देता है। पब्लिक से जान बचाकर वो कहीं छिप जाते हैं तो मंत्री उन्हें भोली पंजाबन के जरिए बुलाकर उनका पैसा पब्लिक को लौटा कर सुहानुभूति का इस्तेमाल चुनावों में करता है।
लेकिन वो मंत्री के काले धंधों पर भोली के जरिए रेड पड़वा देते है, सीएम गठबंधन की दूसरी पार्टी के मुखिया उस मंत्री से पहले ही परेशान था। इधर चूचा को नया सपना आता है शेर और खजाने का, सो कहानी चिड़ियाघर में शिफ्ट हो जाती है, बदला लेने के लिए मंत्री भी भोली और उन चारों की बात मानकर एक मौका देता है, कहानी का आखिरी पार्ट चिड़ियाघर में शेर के बच्चे को लेकर खजाना ढूंढने का है, बाकी के लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी।
यूं तो कहानी में कई झोल हैं, इस बार ये चारों भोली के खिलाफ पुलिस में क्यों नहीं जाते, जबकि वो किडनी और आंखें तक निकालने वाली थी, बल्कि उससे हाथ मिला लेते हैं। डॉन भोली को क्यों नहीं पता था कि मंत्री लॉटरी गैंग के पीछे है, चोरी का इतना माल मंत्री ने तीन साल से एक खुले गोदाम में क्यों डाल रखा था। अक्सर ऐसे घपलों में खरीद में हेरफेर होता है या कीमत में, सामान चुरा लेना जैसा नहीं होता। ऐसे कई सींस हैं हैं लेकिन कॉमेडी फिल्में ऐसी ही होती हैं।
फिल्म में ध्यान से करेक्टर्स की पुरानी आदतें बरकरार रखी गई हैं, चूचा के पापा का बिजली उपकरण सही करते रहना, चूचा का पीठ खुजाते या खुजवाते रहना, इस बार रात की बजाय दिन मे सपने देखना, पंकज त्रिपाठी का सीन के आखिर में एक अंग्रेजी का शब्द जरूर बोलना आदि। देखा जाए तो चूचा यानी वरुण शर्मा ने फिल्म को अपने कंधों पर रखा है, लेकिन मंत्री के रोल में राजीव गुप्ता एक मेन विलेन के रूप मे उभर कर आए हैं। अम्बर सरिया जैसा भले ही कोई गाना ना हो लेकिन जो भी गाने थे वो बैकग्राउंड में चलते रहे, तो म्यूजिक की कमी महसूस नहीं हुई, फिल्म की जान है देसी डायल़ॉग्स और कॉमिक टाइमिंग। कई सींस गैरजरूरी भी लग सकते हैं। फिर भी कोई ये नहीं कह सकता कि पैसा वसूल फिल्म नहीं है।
ये अलग बात है कॉमेडी फिल्म होने के बावजूद कुछ बीजेपी वालों को दिक्कत हो, क्योंकि एक सीन फिल्मकार ने जानबूझकर फिल्म में डाला है, जिसमें शेर को पिंजरे में मीट देते वक्त एक कर्मचारी दूसरे से पूछता है कि यार शेरे के लिए बीफ बैन कब होगा। साफ है मौज मस्ती में बीफ कंट्रोवर्सी पर निशाना साधा गया है। इतना ही नहीं निशाना स्मृति ईरानी पर भी है, चूचा एक लड़की को येल यूनीवर्सिटी का पोस्टर दिखाकर कहता है हम लोग तो जल्द इस येले यूनीवर्सिटी में पढ़ने विदेश जाएंगे।
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