Mirzapur Web Series Review: नए डायरेक्टर करण अंशुमान ने काफी हद तक अपनी वेबसीरीज ‘मिर्जापुर’ में काफी बेहतरीन चीजें समेटने में कामयाब रहे हैं वो भी मनोज बाजपेयी, केके मेनन या नवाजुद्दीन सिद्दीकी जैसे बड़े चेहरों के बिना.
मुंबई, बॉलीवुड डेस्क: अगर आज देसी गैंगवार बेस्ड कोई भी फिल्म या सीरीज रिलीज होगी तो उसकी तुलना अनुराग कश्यप बेस्ड सिनेमा से जरुर की जाएगी, गैंग्स ऑफ वासेपुर, सेक्रेड गेम्स, गुलाल आदि से की जाएगी. ऐसे में नए डायरेक्टर करण अंशुमान को भी इसका अंदाजा बखूबी रहा होगा, इसलिए अपनी सीरीज को ना मुंबई जाने दिया और ना ही पूरी तरह बिहार, बॉर्डर तक ही सीमित रखा. मनोज बाजपेयी, सैफ अली खान, केके मेनन या नवाजुद्दीन सिद्दीकी जैसे बड़े चेहरों के बिना भी किरदारों को ऐसे बुना जाए कि वो उसी तरह दमदार लगें और काफी हद तक ‘मिर्जापुर’ में वो ऐसा करने में कामयाब रहे हैं और आपको अपने वक्त और पैसे की बर्बादी नहीं लगेगी.
कहानी है कुलभूषण खरबंदा की जो पूर्वांचल में यूपी के मिर्जापुर से ठाकुरों का दबदबा खत्म करके त्रिपाठी परिवार की बादशाहत कायम करता है, अपने बेटे अखंडानंद त्रिपाठी (पंकज त्रिपाठी) और उसके दोस्त रतिशंकर शुक्ला के दम पर. लेकिन रति को अपनी पोजीशन अखंडानंद के मुकाबले कमजोर लगती है और वो विद्रोह कर देता है, उसको जौनपुर दे दिया जाता है, लेकिन कुलभूषण खरबंदा ह्वील चेयर पर आ जाता है और अखंडानंद पॉलटिकल वरदहस्त से मिर्जापुर में कालीन के बिजनेस की आड़ में अवैध हथियारों की फैक्ट्री और अफीम के धंधे के दम पर मिर्जापुर का किंग बन जाता है.
पंकज त्रिपाठी कालीन भैया के तौर पर मशहूर हो जाता है, पहली बार आप पंकज को एक ऐसे डॉन के किरदार में देखेंगे, जो सीरियस है, लेकिन इंटेलीजेंट है, जबकि उसके बेटे मुन्ना त्रिपाठी के रोल में हैं दिव्येन्दु, जिस पर बचपना सवार है, सड़कछाप गुंडई करने से बाज नहीं आता. गुड्डू पंडित (अली फजल)और बबलू पंडित (विक्रांत मैसी) से भिड़ जाता है, लेकिन कालीन भैया उनको अपने गैंग से जोड़ लेते हैं. बबलू दिमाग का चैम्पियन है और गुड्डू शरीर का, दोनों कालीन भैया का बिजनेस चमका देते हैं. लेकिन गुड्डू की लवर स्वीटी (श्रेया) से मुन्ना त्रिपाठी का लगाव दोनों के बीच फिर से दरार डाल देता है. इधर चुनाव से पहले पुलिस मिर्जापुर से गैंग्स की सफाई करना चाहती है, उधर रतिशंकर शुक्ला मिर्जापुर पर बादशाहत कायम करना चाहता है. क्लाइमेक्स इस तरह खत्म होता है कि उसमें दूसरे सीजन की गुंजाइश रहे.
ऐसे में इस सीरीज का सबसे दमदार पक्ष है करेक्टारिजेशन कुलभूषण खरबंदा का किरदार, जो एनीमल प्लानेट देखकर जानवरों के व्यवहार से मनुष्यों का व्यवहार समझता है, पंकज त्रिपाठी का किरदार जो इंटेलीजेंट डॉन है, अली फजल का किरदार जो कहीं से भी इंटेलीजेंट ना दिखने में कामयाब रहता है, पंकज की बीवी के तौर पर रसिका दुग्गल का अनसैटिस्फाइड किरदार, ऐसे सभी किरदार आपको बड़े चेहरों की कमी को दूर करते हैं. दूसरा है स्टोरी के लिए पूर्वांचल पर गहरी रिसर्च और खासतौर पर कट्टे के बिजनेस में कबूतरों का और अफीम के बिजनेस में ट्रांसजेंडर्स के इस्तेमाल का आइडिया.
हर एपिसोड आपको अगला एपिसोड दिखने के लिए ललक जगाता है. लेकिन कोशिश की गई है कि सेक्रेड गेम्स की तरह ओवर बोल्ड सीसं ना हों, लस्ट स्टोरीज की तरह फीमेल मस्टरबेशन या सेक्रेड गेम्स की तरह सैक्स सींस हैं, लेकिन ज्यादा क्लोजनेस या न्यूडिटी से बचा गया है. उसी तरह राजीव गांधी फट्टू है, या फिर हिंदू-मुस्लिम, मंदिर-मस्जिद विवाद से दूर केवल मिर्जापुर की गद्दी पर फोकस किया गया, जातिवाद भी उतना ही छुआ गया है, जहां कि ज्यादा जरूरत थी. इतने सब फॉरमूलेज को हटाकर, बडे चेहरों की गैरमौजूदगी में और मुंबई व बिहार जैसे अंडरवर्ल्ड के घोषित अड्डों से अलग दिखाकर भी देखने की ललक जगाए रखना भी तो राइटर डायरेक्टर करण अंशुमान की खूबी ही कही जा सकती है, वो भी तब ज्यादा, जब आप नए हैं.
हालांकि इसमें उनकी मदद की पंकज त्रिपाठी, कुलभूषण खरबंदा, अली फजल , विक्रांत मैसी, श्वेता त्रिपाठी, दिव्येन्दु, रसिका दुग्गल, अमित स्याल, राजेश तैलंग जैसे मंझे हुए एक्टर्स की शानदार एक्टिंग ने और अली फजल को तो खासा स्कोप भी मिला और अली ने वाकई में इस रोल में कमाल कर दिया है. पंकज त्रिपाठी जो अक्सर सीरियस दिखने के बावजूद फनी लगते हैं, इस मूवी में अपनी उन्हीं अदाओं को, इशारों को सीरियस लेकिन इंटेलीजेंट ड़न की अदाओं में बदल दिया, उनकी तारीफ बनती है, तो दिव्येन्दु और विक्रांत मैसी की भी.मिर्जापुर बेबसीरीज के पहले सीजन के 9 एपिसोड्स अमेजन प्राइम वीडियोज पर रिलीज हुए हैं. इसे आप प्राइम वीडियोज का एप अपने मोबाइल में डाउनलोड करके, उसका सब्सस्क्रिप्शन लेकर मोबाइल, लैपटॉप या टीवी से कनेक्ट करके देख सकते हैं.
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