मुंबई: भारत देश को अंग्रेजों की गुलामी से आजादी दिलाने के लिए बहुत से वीरों ने अपने प्राणों का बलिदान कर दिया और स्वतंत्रता संग्राम में कई भारतीय वीर सपूत शामिल हुए. बता दें कि कुछ ने बापू के बताए मार्ग को अपनाते हुए अहिंसा के पथ पर आजादी की राह चुनी तो कुछ अंग्रेजों से आंख में आंख मिलाकर उनके खिलाफ खड़े हो गए. हालांकि इन्हीं क्रांतिकारियों में से एक भगत सिंह थे. जिनका जन्म 28 सितंबर 1907 में हुआ था. साथ ही भगत सिंह ने देश को आजादी दिलाने के लिए अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा भी लिया था. जिसने सेंट्रल असेंबली में बम फेंककर आजादी की मांग की आवाज को हर देशवासी के कान तक पहुंचा दिया था. बता दें कि जेल में अंग्रेजी हुकूमत की प्रताड़ना झेलने के दौरान भी भगत सिंह ने आजादी की मांग को जारी रखा था. तो आइए आज भगत सिंह की जयंती के मौके पर उनके जीवन से जुड़ी ऐसी बाते जानें.
बता दें कि भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की फांसी का विरोध पूरे देश में शुरू होने लगा था और माहौल बिगड़ने के डर से अंग्रेजों ने भगत सिंह को गुपचुप तरीके से तय समय से एक दिन पहले 23 मार्च 1931 की शाम साढ़े सात बजे फांसी दे दी. हालांकि इस दौरान कोई भी मजिस्ट्रेट निगरानी करने को तैयार नहीं था. लेकिन शहादत से पहले तक भगत सिंह अंग्रेजों के खिलाफ नारे लगाते रहे.
सजा तो सिर्फ शुरुआत थी लेकिन भगत सिंह का आंदोलन जेल की सलाखों के पीछे भी जारी रहा. बता दें कि उन्होंने लेख लिखकर अपने क्रांतिकारी विचार भी जाहिर किए. साथ ही वो हिंदी, पंजाबी, उर्दू, बंग्ला और अंग्रेजी के जानकार थे. साथ ही उन्होंने देशभर में अपना संदेश पहुंचाने का प्रयास जारी रखा और अदालत की कार्यवाही के दौरान जब कोर्ट में पत्रकार होते थे, उसके दौरान भगत सिंह आजादी की मांग को लेकर जोशीली बातें करते और जो अगले दिन अखबारों के पन्ने पर नजर आतीं और हर नागरिक का खून आजादी के लिए खौल उठता था.
बता दें कि कैद की सजा के समय भगत सिंह के साथ ही राजगुरु और सुखदेव को अदालत ने फांसी की सजा सुनाई. साथ ही उन्हें 24 मार्च 1931 को फांसी दी जानी थी लेकिन देशवासियों के आक्रोश से डरकर अंग्रेजों ने एक दिन पहले ही गुपचुप तरीके से फांसी देने का फैसला कर लिया.
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