मीरा बाई के भजन से मिली पहचान, जानिए पाकिस्तानी सिंगर नय्यारा नूर का भारत से कनेक्शन?

नई दिल्ली : 21 अगस्त के दिन पकिस्तान की दिग्गज गायिका नय्यारा नूर का निधन हो गया. नय्यारा नूर को उनकी जादूई आवाज़ के लिए और खित्ते की बाकमाल आवाज़ के रूप में जाना जाता है. पड़ोसी मुल्क में उनकी बतौर पाकिस्तान की बुलबुल पहचान है. पाक बुलबुल की ख़ास बात ये थी की उन्होंने […]

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मीरा बाई के भजन से मिली पहचान, जानिए पाकिस्तानी सिंगर नय्यारा नूर का भारत से कनेक्शन?

Riya Kumari

  • August 22, 2022 6:38 pm Asia/KolkataIST, Updated 2 years ago

नई दिल्ली : 21 अगस्त के दिन पकिस्तान की दिग्गज गायिका नय्यारा नूर का निधन हो गया. नय्यारा नूर को उनकी जादूई आवाज़ के लिए और खित्ते की बाकमाल आवाज़ के रूप में जाना जाता है. पड़ोसी मुल्क में उनकी बतौर पाकिस्तान की बुलबुल पहचान है. पाक बुलबुल की ख़ास बात ये थी की उन्होंने कभी किसी की शागिर्दगी में संगीत और गायन की तालीम नहीं ली. उन्होंने आलातरीन फ़नकारों को सुना और रियाज़ किया और जी लगाकर रियाज़ किया जिससे उन्हें ये कला आई. काफी कम लोग जानते हैं कि नय्यारा का भारत से भी गहरा संबंध है.

कौन है नय्यारा नूर ?

अली सेठी और शाय गिल का पसूरी गाना तो आपने भी सुना होगा. इस गाने ने उन्हें खूब फेम दिया. लेकिन सोशल मीडिया ख़ासकर इंस्टाग्राम पर शाय गिल के चाहने वाले उन्हें ‘कहां हो तुम चले आओ…’ सॉन्ग के कवर के लिए जानते हैं. ये गाना अरसे पहले उस सिंगर की आवाज़ में गाया गया था जिसने फ़ैज़, ग़ालिब से लेकर कई अज़ीम शायरों की रचनाओं को गुनगुनाया। भारत में जन्मी फिर भी पाकिस्तान की बनकर रह गईं वह महान गायिका नय्यारा नूर हैं. जिसने इस दुनिया को अलविदा कह दिया है.

गाने का नहीं, सुनने का शौक़ था…

पाकिस्तान की बुलबुल, इस खित्ते की बाकमाल आवाज़, किसी की शागिर्दगी में संगीत और गायन की तालीम ना लेने वाली नय्यारा नूर को संगीत गाने का नहीं बल्कि, सुनने का शौक था. उनका कहना था कि सुनना अपने आप में एक कला और इल्म है. नय्यारा उस्तादों को ग़ौर से सुना करती थीं और उनकी अदायगी, सुर अपने भीतर साजो लिया करती थीं. इस बता का ज़िक्र करते हुए उन्होंने एक बार कहा, ‘जब आप अपने अंदर की दुनिया को समझते हैं और पूरी तरह से जान लेते हैं, उस में चलने फिरने की समझ-बूझ आ जाती है और आप अपने अंदर के इंसान को जानते हैं और आप ख़ुद कौन हैं, तो फिर बाहर की जो बज़ाहिर बहुत मुश्किल चीज़ें हैं, उनसे सामना करने का सलीका आपको खुद आ जाता है.’

 

नय्यारा नूर, उनका बचपन और परिवार

3 नवंबर 1950 को आज़ाद हिंदुस्तान के असम के गुवाहाटी में नय्यारा नूर का जन्म हुआ. जहां उनके बचपन का शुरूआती दौर पहाड़, पेड़ और प्रकृति के बीच बीता. छुटपन में वे कानन देवी, कमला झरिया के भजन और बेग़म अख़्तर की ग़ज़लों और ठुमरियों को ही सुनती थीं. हालांकि, इनके अलावा उनके घर का माहौल ऐसा था जहां के एल सहगल, पंकज मलिक जैसे गायकों का कलेक्शन मौजूद था इससे उनकी संगीत की समझ पुख़्ता हुई. उनके पिता ऑल इंडिया मुस्लिम लीग के सक्रिय कार्यकर्ता थे और जब मोहम्मद अली जिन्ना का असम दौरा हुआ तो उनकी अगुवानी करने वालों में शामिल थे.

नय्यारा के परिवार वैसे तो अमृतसर से तालुल्क रखता था लेकिन संभवतः व्यापार के सिलसिले में वे असम आए थे. बंटवारे के लगभग 10 साल बाद 1957-58 में नय्यारा मां और भाई-बहनों के साथ पाकिस्तान जाकर कराची में रहने लगीं. और वहाँ से वो पकिस्तान की ही होकर रह गईं.

मीरा के भजन से मिली प्रसिद्धि

लाहौर के नेशनल कॉलेज ऑफ आर्ट्स में एक शाम के नय्यारा नूर की कहानी को बदल देने वाली थी. कॉलेज में संगीत का एक कार्यक्रम था. कार्यक्रम के मुख्य गायक का इंतज़ार हो रहा था. खाली समय को भरने के लिए उनसे गाना गाने के लिए कहा गया. उन्होंने ‘जो तुम तोड़ो पिया…’ भजन गाया. मीरा बाई का लिखा और गाया हुआ ये भजन लता मंगेशकर की आवाज़ में भी गाय गया है. जब नय्यारा गा ही रहीं थी, इसी बीच इस्लामिया कॉलेज के प्रोफेसर असरार साहब की उन पर नज़र पड़ी जो अपने आप में बड़े संगीतज्ञ और संगीत की गहरी समझ रखने वाले पारखी व्यक्ति थे. इस एक गायन भजन से उनका जीवन बदल गया.

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