बॉलीवुड डेस्क, मुंबई. ये आसान नहीं होता कि आप किसी बड़ी फिल्म या कहानी का रीमेक बनाएं। आमतौर पर इसके लिए दो ही कामयाब फॉरमूले माने जाते रहे हैं, पहला जो डॉन के रीमेक के लिए फरहान अख्तर ने अपनाया, क्लाइमेक्स में ड्रामेटिक बदलाव कर दिया और अमिताभ की जगह किसी और को ऑडियंस झेल सकें, इसके लिए शाहरुख जैसा सुपरस्टार लिया। दूसरा फॉरमूला है कि आप एक नए सैटअप, नई कल्चर में चले जाएं, हाल ही में मराठी फिल्म सैराट के रीमेक धड़क के लिए करण जौहर ने उदयपुर को चुना और राजस्थानी टच दिया। साजिद अली ने दूसरा फॉरमूला अपनाया है, वो कश्मीर की हसीन वादियों में लैला मजनूं को ले गए, अब गेंद उन लोगों के पाले में हैं, जो कभी ना कभी किसी के प्यार में पागल हो चुके हैं।
कहानी रोमांटिक फिल्मों के किंग इम्तियाज अली ने लिखी है, उनके भाई साजिद अली पहली बार इस मूवी से डायरेक्शन में उतर रहे हैं। चूंकि उनके नाना पीछे बट सरनेम लगाते थे, सो मजनूं यानी कैश का सरनेम भी इस मूवी में बट ही है। कश्मीर पर बनी अरसे बाद ऐसी मूवी है, जिसमें ना आतंकियों का जिक्र हैं और ना ही आर्मी का, एक आम शहर जैसा लगता है। लैला (तृप्ति डिमरी) और कैश (अविनाश तिवारी) के पिता घाटी की ब़ड़ी हस्ती हैं, लेकिन एक जमीन को लेकर दोनों के बीच तनातनी है, इस तनातनी का फायदा एक तीसरा बंदा उठाता है, जो लैला को अपनी बीवी बनाना चाहता है।
लैला आजकल की उन स्टाइलिश लड़की के रोल में हैं, जिसे अपनी खूबसूरती और अपने पीछे पड़े आशिकों का बखूबी अंदाजा है और वो किसी से इनवॉल्ब हुए बिना भी किसी को निराश नहीं करती तो कैश एक बिजनेसमेन का बिंदास बेटा है। उसके बारे में तमाम कहानियां शहर में प्रचलित हैं कि उसके कितने अफेयर है। ऐसे में दोनों की एक मुलाकात और कैश लैला का दीवानी हो जाता है, और फिर खूबसूरत वादियों में वो प्यार परवान चढ़ता है थोड़ी सी नोंकझोंक के बाद। लेकिन दोनों के पिताओं के बीच की नफरत के चलते लैला की शादी किसी दूसरे से हो जाती है और कैश धीरे धीरे दीवाना होने लगता है, इधर लैला को मौका मिलता है उसकी जिंदगी में वापस आने का। बाकी की कहानी आपको मूवी में पता चलेगी।
इस मूवी की खासियत है इसकी खूबसूरत लोकेशंस, लैला मजनूं के बीच की नोक झोंक, ताजा लगने वाला म्यूजिक और प्यार में पागलपन। कुछ रोमांटिक डायलॉग्स भी अच्छे बन पड़े हैं, मसलन प्यार का प्रॉब्लम क्या है ना, जब तक उसमें पागलनपन ना हो वो प्यार ही नहीं’। नीलाद्री कुमार और ज़ॉय बरुआ ने दो तीन गाने अच्छे दिए हैं, इरशाद कामिल ने लिखे हैं। सिनेमेटोग्राफी भी बेहतर है। फिर भी फिल्म में कॉमेडी एक लेवल तक ही है, एक्शन भी कुछ खास नहीं है, सैटायर नहीं है, सस्पेंस तो ही ही नहीं और ना ही कोई बड़ा चेहरा है जिसके लिए इस मूवी को कोई देखने आएगा। परमीत सेठी के अलावा कोई ऐसा स्ट्रॉंग चेहरा नहीं है जो फिल्म में आपको बांध सके। फिल्म का क्लाइमेक्स भी कमजोर है।
हालांकि नए चेहरे के तौर पर तृप्ति डिमरी आपको निराश नहीं करेंगी, और अविनाश तिवारी ने भी अपने बेस्ट दिया है। फिर भी नए चेहरे होना ही उनके लिए दिक्कत है। ऐसे में फिल्म का फ्यूचर क्या होगा? दरअसल फिल्म की कामयाबी अब बस दो तरह के लोगों पर निर्भर करेगी, एक वो नई जनरेशन जो लैला मजनूं की कहानी देखना चाहती है, वो भी अपने दौर की यानी मोबाइल पर चैटिंग करते हुए। दूसरे वो लोग हैं जो कभी ना कभी किसी ना किसी के प्यार में पागल हो चुकें है या आजकल इस दौर से गुजर रहे हैं।
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वीडियो में जानिए कैसी है लैला-मजनू:
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